Book Title: Gautamiya Kavyam
Author(s): Rupchandra Gani, Kanakvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

Previous | Next

Page 12
________________ "आ (१९मा ) शतकमां खरतरगच्छना श्रीक्षमाकल्याण उपा"ध्याय थया के जे खरतरगच्छीय श्रीजिनलामसूरिना शिष्य अमृत"धर्मना शिष्य हता. तेमणे सं० १८२९थी १८६९ना गाळामां "अनेक ग्रन्थोना दोहनरूपे सादी भाषामां विवरण करेल छे. तेमना "ग्रन्थो आ छे: श्रीगौतमीयकाव्य व्याख्या, सं० १८३०मां "खरतरगच्छ पट्टावली, सं० १८३५मां चातुर्मासिक-होलिका आदि १ जिनलाभसूरिना शिष्य नहि, पण जिनलाभसूरिना गुरु श्रीजिनभक्तिसूरिना शिष्य प्रीतिसागरना शिष्य अमृतधर्म हता. जुओ उपाध्याय क्षमाकल्याणजीनी-खकृत खरतरगच्छपट्टावलीप्रशस्ति' श्रीजिनभक्तिसूरि जिनलाभसूरि प्रीतिसागर श्रीअमृतधर्म उपा० क्षमाकल्याण "श्रीजिनभक्तिसूरीन्द्र-सुशिष्या बुद्धिवार्द्धयः। प्रीतिसागरनामानस्तच्छिष्या वाचकोत्तमाः" ॥२॥ "श्रीमन्तोऽमृतधर्माख्यास्तेषां शिष्येण धीमता। क्षमाकल्याणमुनिना, शुद्धिसम्पत्तिसिद्धये" ॥ ३॥ "संवत्सरे व्योमकृशानुसिद्धि-क्षोणीमिते फाल्गुनमासि रम्ये । विशुद्धपक्षे लिखिता नवम्यां, गुरुस्तुतिीर्णगढे नवाऽसौ"॥४॥ [१८३०] खरतरगच्छ-पट्टावली-संग्रह, बाबू पूरणचंदजी नाहरवाली, सने १९३२ नी छापेली पार्नु ३९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 334