Book Title: Gautamiya Kavyam
Author(s): Rupchandra Gani, Kanakvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 11
________________ व्याख्या, के जे 'गौतमीयप्रकाश'ना नामथी रचायेली छे, ते प्रकाश व्याख्याना रचयिता पाठकश्री क्षमाकल्याणजी गणिवर छे. प्रस्तुत व्याख्यामां व्याख्याकार महापुरुषे अति परिश्रम लईने मूलकारना अर्थगंभीर शब्दोने तेम गूढ भावोने खूब ज सरळ अने मनोरम पद्धतिपूर्वक स्पष्ट करेल छे. साचे ज 'गौतमीयकाव्य'नी व्युत्पत्तिना मार्गमां, आ व्याख्या सुन्दरतर प्रकाशने पाथरे छे. आ कारणे प्रस्तुत व्याख्यान 'प्रकाश' ए अभिधान वास्तविक छे. ___ व्याख्याकारे, मूळ काव्यग्रन्थना अभ्यासक वर्गना उपकारनी दृष्टिये प्रस्तुत व्याख्यामां, मूलकारना आशयने स्पष्ट करवानी खूब काळजी लीधी छे. साथे मूलश्लोकोना शब्दोने सहमजाबका माटे, व्याकरणना सूत्रो ठामठाम मूक्या छे. तेम श्रीअभिधान-चिन्तामणि आदि कोशोनी साक्षी पण अवसरे अवसरे टांकी छे. आ प्रकारनी विशिष्टताना योगे प्रस्तुत प्रकाश व्याख्या, काव्यना विषय- ज्ञान मेळववा इच्छनार अभ्यासक वर्गना; व्याकरण तेम ज कोश वगेरेना ज्ञाननो विकास करे छे. आ रीतिये दरेक दृष्टिये प्रस्तुत व्याख्या, अभ्यासी के विद्वान सौ कोईनुं आकर्षण करी शके तेवी छे, अने व्याख्याकारनी समर्थ विद्वत्ता; प्रौढ अनुभवशीलता; तथा अनुपम विवेचनाशक्ति; वगेरे सूचित करे छे. व्याख्याकार पाठकश्री क्षमाकल्याणजीना सत्ताकाल वगेरे जीवनवृत्तने अंगे, प्रस्तुत प्रकाश व्याख्यानी प्रशस्तिमा व्याख्याकारे खयं करेल उल्लेख परथी केटलुक जाणवा जेवू आपणने मळी रहे छे. आविषेना विशेष ऐतिह्यवृत्तनी नोंध, 'जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहास'मां आ मुजब छः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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