Book Title: Ganivijja Sutram
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri
Publisher: USA Federation of JAINA

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Page 12
________________ पसवणेय नक्खत्ते॥२॥एएसुय अद्धाणं पत्थाणं ठाणयं चकायव्वं जइय गहत्थं न चिट्ठइ संझाभुकं च जइ होइ॥३॥उम्पन्न भत्तपाणो अद्धाणम्मि सया 3 जो होइ। फलपुष्फोवगवेओ गओवि खेमेण सो ए३॥ ४॥ संझागरविण्यं विड्डेरं सग्गहं विलंबिं चोराहुगयं । गहभिन्नं च वजए सव्वनक्खत्ते ॥५॥ अत्थमणे संझागय रविगय जहियं ठिओ उ आइच्यो। विड्डेरमवहारिय सगह कूरगहठियं तु॥ ६॥आइच्चपिटुओ से विलंबि राहहयं जहिं गहणीमज्झेण गहो जस्स उगच्छइ त होइ गहभिन्नं ॥७॥ संज्झागयभिम कलहो होड विवाओ विलंबिनक्खत्ते। विड्डेरे परविजओ आइच्छगए अनिव्वाणी॥८॥जं सन्गहम्भि कीरइ नक्खत्ते तत्थ निग्गहो होइ। राहुहयम्भि यमरणं गहभिन्ने सोणिउन्गाले॥९॥संझागयं राहगयं आइच्चगयं च दुब्बलं रिक्खीसंझाइविमुकं गहमुकं चेव बलियाई॥२०॥ पुस्सो हत्थो अभीई य, अस्सिणी भरणी तहा। एएसु य रिक्खेसुं, पाओवगमणं करे॥१॥ स्वर्णण गिट्ठाइ पुणव्वसू नवि करिज निक्खभण। सयभिसयपूसथंभे ( हत्थे ) विजारंभे पवित्तिज्जा ॥ २॥ भिगसिर अद्दा पुस्मो तिन्नि णिहा पुणव्वसू रोहिणी । पुस्सो य (पुव्वाई मूलमस्सेसा हत्थो चित्तायतहा दस वुड्डिकराई नाणस्स) ॥३॥पुणव्वसूणा पुस्सेण, सवणेण धणिया।एएहिं चउरिक्खेहि, लोयकम्माणि कार५॥ ४॥ कित्तियाहिं विसाहाहिं, मघाहिं भरणीहि यो एएहिं चरिक्खेहि, लोयकम्माणि वजए ॥५॥ तिहिं| उत्तराहिं रोहिणीहिं, कुज्जा उसेहनिक्खमणीसेहोवठ्ठावणं कुज्जा, अणुन्ना गणिवायए ॥६॥गणसंगहणं कुज्जा, गणहरं वेव गवए। उगह वसहि ठाण, थावराणि पवत्तए॥७॥पुस्सो हत्थो अभिई,अस्सिणीय तहेवयोचत्तारि खियकारीणी, जारंभेसुसोहणा॥८॥ | ॥श्री गणिविन्झा सूत्र ॥ पू. सागरजी म. संशोधित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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