Book Title: Gandhiji ki Jain Dharm ko Den
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 2
________________ ५४२ जैन धर्म और दर्शन हासिक पुरावा कहता है कि सब का अर्थात् प्राणीमात्र का जिसमें मनुष्य, पशुपक्षी के अलावा सूक्ष्म कीट जंतु तक का समावेश हो जाता है-सब तरह से भला करो। इसी तरह प्राणीमात्र को किसी भी प्रकार से तकलीफ न दो । यह पुरावा कहता है कि जैन परंपरागत धर्मचेतना की भूमिका प्राथमिक नहीं है। मनुष्य जाति के द्वारा धर्मचेतना का जो क्रमिक विकास हुश्रा है उसका परिपक्क रूप उस भूमिका में देखा जाता है। ऐसे परिपक्व विचार का श्रेय ऐतिहासिक दृष्टि से भगवान् महावीर को तो अवश्य है ही। कोई भी सत्पुरुषार्थी और सूक्ष्मदर्शी धर्मपुरुष अपने जीवन में धर्मचेतना का कितना ही स्पंदन क्यों न करे पर वह प्रकट होता है सामयिक और देशकालिक अावश्यकताओं की पूर्ति के द्वारा। हम इतिहास से जानते हैं कि महावीर ने सब का भला करना और किसी को तकलीफ न देना इन दो धर्मचेतना के रूपों को अपने जीवन में ठीक-ठोक प्रकट किया । प्रकटीकरण सामयिक जरूरतों के अनुसार मर्यादित रहा । मनुष्य जाति की उस समय और उस देश की निर्बलता, जातिभेद में, छुआछूत में, स्त्री की लाचारी में और यज्ञीय हिंसा में थी। महाबीर ने इन्हीं निर्बलताओं का सामना किया । क्योंकि उनकी धर्मचेतना अपने आस-पास प्रवृत्त अन्याय को सह न सकती थी। इसी करुणावृत्ति ने उन्हें श्रारिग्रही बनाया। अपरिग्रह भी ऐसा कि जिसमें न घर-बार और न ' वस्त्रपात्र । इसी करुणावृत्ति ने उन्हें दलित पतित का उद्धार करने को प्रेरित किया । यह तो हुश्रा महावीर की धर्मचेतना का स्पंदन ।। पर उनके बाद यह स्पंदन जरूर मंद हुश्रा और धर्मचेतना का पोषक धर्म कलेवर बहुत बढ़ते बढ़ते उस कलेवर का कद और वजन इतना बढ़ा कि कलेवर की पुष्टि और वृद्धि के साथ ही चेतना का स्पंदन मंद होने लगा। जैसे पानी सुखते ही या कम होते ही नीचे की मिट्टी में दरारें पड़ती हैं और मिट्टी एकरूप न रह कर विभक्त हो जाती है वैसे ही जैन परम्परा का धर्मकलेवर भी अनेक टुकड़ों में विभक्त हुअा और वे टुकड़े स्पंदन के मिथ्या अभिमान से प्रेरित होकर आपस में ही लड़ने-झगड़ने लगे । जो धर्मचेतना के स्पंदन का मुख्य काम था वह गौण हो गया और धर्मचेतना की रक्षा के नाम पर वे मुख्यतया गुजारा करने लगे। ... धर्म-कलेवर के फिरकों में धर्मचेतना कम होते ही अासपास के विरोधी दलो ने उनके ऊपर बुरा असर डाला। सभी फिरके मुख्य उद्देश्य के बारे में इतने निर्बल साबित हुए कि कोई अपने पूज्य पुरुष महावीर की प्रवृत्ति को योग्य रूपमें आगे न बढ़ा सके । स्त्री-उद्धार की बात करते हुए भी वे स्त्री के अबलापन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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