Book Title: Gandhiji ki Jain Dharm ko Den
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 5
________________ ३५ गांधीजी की जैन धर्म को देन " बैठ सकता है ? ऐसा हो तो फिर त्याग मार्ग और अनगार धर्म जो हजारों वर्ष से चला आता है वह नष्ट ही हो जाएगा। पर जैसे-जैसे कर्मवीर गांधी एक के बाद एक नए-नए सामाजिक और राजकीय क्षेत्र को सर करते गए और देश के उच्च से उच्च मस्तिष्क भी उनके सामने झुकाने लगे; कवीन्द्र रवीन्द्र, लाला लाजपतराय, देशबन्धु दास, मोतीलाल नेहरू श्रादि मुख्य राष्ट्रीय पुरुषों ने गांधीजी का नेतृत्व मान लिया। वैसे-वैसे जैन समाज की भी सुषुप्त और मूर्च्छितसी धर्म चेतना में स्पन्दन शुरू हुआ । स्पन्दन की लहर क्रमशः ऐसी बढ़ती और फैलती गई कि जिसने ३५ वर्ष के पहले की जैन समाज की काया पलट ही दी। जिसने ३५ वर्ष के पहले की जैन समाज की बाहरी और भीतरी दशा खों देखी है और जिसने पिछले ३५ वर्षों में गांधीजी के कारण जैन समाज में सत्वर प्रकट होनेवाले सात्विक धर्म-स्पन्दनों को देखा है वह यह बिना कहे नहीं रह सकता कि जैन समाज की धर्म चेतना - जो गांधीजी को देन है वह इतिहास काल में अभूतपूर्व है । अब हम संक्षेप में यह देखें कि गांधीजी की यह देन किस रूप में है । जैन समाज में जो सत्य और अहिंसा की सार्वत्रिक कार्यक्षमता के बारे में विश्वास की जड़ जमी थी, गांधीजी ने देश में आते ही सबसे प्रथम उस पर कुठाराघात किया । जैन लोगों के दिल में सत्य और अहिंसा के प्रति जन्मसिद्ध आदर तो था ही। वे सिर्फ प्रयोग करना जानते न थे और न कोई उन्हें प्रयोग के द्वारा उन सिद्धान्तों की शक्ति दिखाने वाला था। गांधीजी के अहिंसा और सत्य के सफल प्रयोगों ने और किसी समाज की अपेश्चा सबसे पहले जैन समाज का ध्यान खींचा । अनेक बूढ़े तरुण और अन्य शुरू में कुतूहलवश और पीछे लगन से गांधीजी के आसपास इकट्ठे होने लगे। जैसे-जैसे गांधीजी के सा और सत्य के प्रयोग अधिकाधिक समाज और राष्ट्रव्यापी होते गए वैसे-वैसे जनसमाज को विरासत में मिली अहिंसावृत्ति पर अधिकाधिक भरोसा होने लगा और फिर तो वह उन्नत मस्तक और प्रसन्न-बदन से कहने लगा कि 'हिंसा परमो धर्मः' यह जो जैन परम्परा का मुद्रालेख है उसी की यह विजय है । जैनपरम्परा स्त्री की समानता और मुक्ति का दावा तो करती ही आ रही थी; पर व्यवहार में उसे उसके बलापन के सिवाय कुछ नजर आता न था । उसने मान लिया था कि त्यक्ता, विधवा और लाचार कुमारी के लिए एक मात्र बलप्रद मुक्तिमार्ग साध्वी बनने का है। पर गांधीजी के जादू ने यह साबित कर दिया कि अगर स्त्री किसी अपेक्षा से अबला है तो पुरुष भी अन्नल ही है । अगर पुरुष को सबल मान लिया जाए तो स्त्री के अचला रहते वह सबल बन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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