Book Title: Gandhiji ki Jain Dharm ko Den
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 6
________________ ५४६ जैन धर्म और दर्शन - नहीं सकता। कई श्रंशों में तो पुरुष की अपेक्षा स्त्री का बल बहुत है । यह बात गांधीजी ने केवल दलीलों से समझाई न थी पर उनके जादू से स्त्रीशक्ति इतनी अधिक प्रकट हुई कि अब तो पुरुष उसे अबला कहने में सकुचाने लगा | जैन स्त्रियों के दिल में भी ऐसा कुछ चमत्कारिक परिवर्तन हुना कि वे * अपने को शक्तिशाली समझकर जवाबदेही के छोटे-मोटे अनेक काम करने लगी और आमतौर से जैन समाज में यह माना जाने लगा कि जो स्त्री ऐहिक बन्धनों से मुक्ति पाने में समर्थ है वह साध्वी बनकर भी पारलौकिक मुक्ति पा नहीं सकती । इस मान्यता से जैन बहनों के सूखे और पीले चेहरे पर सुख श्रा -गई और वे देश के कोने-कोने में जवाबदेही के अनेक काम सफलतापूर्वक करने लगीं । अब उन्हें त्यक्तापन, विधवापन या लाचार कुमारीपन का कोई दुःख नहीं - सताता । यह स्त्री-शक्ति का कायापलट है । यों तो बैन लोग सिद्धान्त रूप से 1 जातिभेद और छुआछूत को बिलकुल मानते न थे और इसी में अपनी परम्परा का गौरव भी समझते थे; पर इस सिद्धान्त को व्यापक तौर से वे अमल में लाने में असमर्थ थे। गांधीजी की प्रायोगिक अंजनशलाका ने जैन समझदारों के नेत्र खोल दिए और उनमें साहस भर दिया फिर तो वे हरिजन या अन्य दलितवर्ग को समान भाव से अपनाने लगे । अनेक बूढ़े और युवक स्त्री-पुरुषों का खास - एक वर्ग देश भर के जैन समाज में ऐसा तैयार हो गया है कि वह अब रूढ़ि चुस्त मानस की बिलकुल परवाह बिना किये हरिजन और दलित वर्ग की सेवा में या तो पड़ गया है, या उसके लिए अधिकाधिक सहानुभूतिपूर्वक सहायता करता है । जैन समाज में महिमा एक मात्र त्याग की रही; पर कोई त्यागी निवृत्ति और प्रवृत्ति का सुमेल साध न सकता था । वह प्रवृत्ति मात्र को निवृत्ति विरोधी समझकर अनिवार्य रूप से आवश्यक ऐसी प्रवृत्ति का बोझ भी दूसरों के कन्धे पर डालकर निवृत्ति का सन्तोष अनुभव करता था। गांधीजी के जीवन ने दिखा दिया कि निवृत्ति और प्रवृत्ति वस्तुतः परस्सर विरुद्ध नहीं । जरूरत है तो दोनों के रहस्य पाने की। समय प्रवृत्ति की माँग कर रहा था और निवृत्ति की भी । सुमेल के बिना दोनों निरर्थक ही नहीं बल्कि समाज और राष्ट्र घातक सिद्ध हो रहे थे । गांधीजी के जीवन में निवृत्ति और प्रवृत्ति का ऐसा सुमेल जैन समाज ने देखा जैसा गुलाब के फूल और सुवास का । फिर तो मात्र गृहस्थों की ही नहीं, बल्कि त्यागी अनगारों तक की आँखें खुल गई। उन्हें अब जैन शास्त्रों का असली मर्म दिखाई दिया या वे शास्त्रों को नए अर्थ में नए सिरे से देखने लगे । कई त्यागी अपना भिक्षुवेष रखकर भी या छोड़कर भी निवृत्ति प्रवृत्ति के गंगा-यमुना संगम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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