Book Title: Drushtantabhasa Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 3
________________ २०६ वैदिक परम्परा के निदर्शनाभास और उदाहरणाभास शब्द को। सिद्धसेन ने' अपने संक्षिप्त कथन में संख्या का निर्देश तो नहीं किया परन्तु जान पड़ता है कि वे इस विषय में धर्मकीर्ति के समान ही नव-नव दृष्टान्ताभासों को माननेवाले हैं। माणिक्यनन्दी ने तो पूर्ववतों सभी के विस्तार को कम करके साधय और वैधयं के चार-चार ऐसे कुल पाठ ही दृष्टान्तामास दिखलाए हैं और (परी० ६. ४०-४५) कुछ उदाहरण भी बदलकर नए रचे हैं। वादी देवसरि ने तो उदाहरण देने में माणिक्यनन्दी का अनुकरण किया, पर भेदों की संख्या, नाम श्रादि में अक्षरशः धर्मकीर्ति का ही अनुकरण किया है। इस स्थल में वादी देवसूरि ने एक बात नई जरूर की। वह यह कि धर्मकीर्ति ने उदाहरण देने में जो वैदिक ऋषि एवं जैन तीर्थकरों का लघुत्व दिखाया था उसका बदला वादी देवसूरि ने सम्भवित उदाहरणों में तथागत बुद्ध का लघुत्व दिखाकर पूर्ण रूप से चुकाया। धर्मकीर्ति के द्वारा अपने पूज्य पुरुषों के ऊपर तर्कशास्त्र में की गई चोट को वादिदेव सह न सके, और उसका बदला तर्कशास्त्र में ही प्रतिबन्दी रूप से चुकाया। १ 'साधयेणात्र दृष्टान्तदोषा न्यायविदीरिताः। श्रपलक्षण हेतूत्याः साध्यादिविकलादयः ॥ वैधभ्यणात्र दृष्टान्तदोषा न्यायविदीरिताः। साध्यसाधनयुग्मानामनिवृतेश्च संशयात् ॥'-न्याय० २४-२५ । २ 'यथा नित्यः शब्दोऽमूर्तत्वात्, कर्मवत् परमाणुवद् घटवदिति साध्यसाधन. धर्मोभयविकलाः। तथा सन्दिग्धसाध्यधर्मादयश्च, यथा रागादिमानयं वचनाद्रथ्यापुरुषवत्, मरणधर्माऽयं पुर पो रागादिमत्त्वाथ्यापुरुषवत् असर्वज्ञोऽयं रागादिमत्त्वाद्रध्यापुरुषवत् इति । अनन्धयोऽप्रदर्शितान्वयश्च, यथा यो वक्ता स रागादिमानिष्टपुरुषवत्, अनित्यः शब्दः कृतकत्वाद् घटवत् इति । तथा विपरीतान्वयः, यदनित्यं तत् कृतकमिति । साधम्र्येण । वैधयेणापि, परमाणुषत् कर्मवदाकाशवदिति साध्याद्यव्यतिरेकिणः । तथा सन्दिग्धसाध्यव्यतिरेकादयः, यथाऽसर्वशाः कपिलादयोऽनाप्सा वा, अविद्यमानसर्वज्ञताप्सतालिङ्गभूतप्रमाणातिशयशासनत्यादिति, अत्र वैधर्योदाहरणम् , यः सर्वज्ञः आसो वा स ज्योतिर्ज्ञानादिकमुपदिष्टवान् , तद्यथर्षभवर्धमानादिरिति, तत्रासर्वज्ञतानाप्ततयोः साध्यधर्मयोः सन्दिग्धो व्यतिरेकः । सन्दिग्धसाधनव्यतिरेको यथा न त्रयीविदा आहाणेन ग्राह्यवचनः कश्चित्पुरुषो रागादिमत्वादिति, अत्र वैधर्योदाहरणं ये ग्राह्यवचना न ते रागादिमन्तः तद्यथा गौतमादयो धर्मशास्त्राणां प्रणेतार इति गौतमादिभ्यो रागादिमत्त्वस्य साधनधर्मस्य व्यावृत्तिः सन्दिग्धा । सन्दिग्धोमयन्यतिरेको यथा, अवीतरागा: कपिलादयः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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