Book Title: Drushtantabhasa
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ ११३ अनाप्तत्व साधक जो अनुमान प्रयोग रखे हैं उनका स्वरूप तथा तदन्तर्गत हेतु, का स्वरूप विचारते हुए जान पड़ता है कि सिद्धसेन के सन्मति जैसे और समन्तभद्र के प्राप्तमीमांसा जैसे कोई दूसरे ग्रन्थ धर्मकीर्ति के सामने अवश्य रहे हैं जिनमें जैन तार्किकों ने अन्य सांख्य श्रादि दर्शनमान्य कपिल' आदि को सर्वज्ञता का और प्राप्तता का निराकरण किया होगा। ई० १६३६] [प्रमाण मीमांसा दूषण दूषणाभास परार्थानुमान का एक प्रकार कथा' भी है, जो पक्ष-प्रतिपक्षभाव के सिवाय कभी शुरू नहीं होती। इस कथा से संबन्ध रखनेवाले अनेक पदार्थों का निरूपण करनेवाला साहित्य विशाल परिमाण में इस देश में निर्मित हुआ है। यह साहित्य मुख्यतया दो परम्पराओं में विभाजित है-ब्राह्मण-वैदिक परम्परा और श्रमण-वैदिकेतर परम्परा । वैदिक परम्परा में न्याय तथा वैद्यक सम्प्रदाय का समावेश है । श्रमण परम्परा में बौद्ध तथा जैन सम्प्रदाय का समावेश है। वैदिक परम्परा के कथा संबन्धी इस वक्त उपलब्ध साहित्य में अक्षपाद के न्यायसूत्र तथा चरक का एक प्रकरण-विमानस्थान मुख्य एवं प्राचीन हैं। न्यायभाष्य, न्यायवार्षिक, तात्पर्यटीका, न्यायमञ्जरी आदि उनके टीकाग्रन्थ तथा न्यायकलिका भी उतने ही महत्त्व के हैं । वौद्ध सम्प्रदाय के प्रस्तुत विषयक साहित्य में उपायहृदय, तर्कशास्त्र, प्रमाणसमुच्चय, न्यायमुख, न्यायबिन्दु, वादन्याय इत्यादि ग्रन्थ मुख्य एवं प्रतिष्ठित हैं। जैन सम्प्रदाय के प्रस्तुत साहित्य में न्यायावतार, सिद्धिविनिश्चयटीका, न्यायविनिश्चय, तत्वार्थश्लोकवार्तिक, प्रमेयकमलमार्तण्ड, प्रमाण नयतत्त्वालोक इत्यादि ग्रन्थ विशेष महत्त्व के हैं। उक्त सब परस्परानों के ऊपर निर्दिष्ट साहित्य के आधार से यहाँ कथासम्बन्धी कतिपय पदार्थों के बारे में कुछ मुद्दों १ पुरातत्त्व पु० ३. अङ्क ३रे में मेरा लिखा 'कथापद्धतिनु स्वरूप अने तेना साहित्यनु दिग्दर्शन' नामक लेख देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14