Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan Author(s): Priyasnehanjanashreeji Publisher: Priyasnehanjanashreeji View full book textPage 5
________________ है और जहाँ आवश्यकता हुई वहाँ उनकी समीक्षा भी प्रस्तुत की है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने द्रव्य, गुण, पर्याय के स्वरूप, प्रकार और सह सम्बन्ध को लेकर न केवल जैन मन्तव्यों की पुष्टि की है, अपितु उनका अन्य दार्शनिकों की क्या मत - वैभिन्य रहा है, उसको भी स्पष्ट किया है। मैने उसकी भी चर्चा एवं समीक्षा प्रस्तुत शोधप्रबन्ध में की है। 3 इस दृष्टि से यशोविजयजी ने इस ग्रन्थ में अनेक जैन और जैनेतर ग्रन्थों का पर्यावलोचन कर उनके मन्तव्यों से या तो अपने मत की पुष्टि की है या तो फिर उन मन्तव्यों की समीक्षा की है जो इस शोध का महत्त्वपूर्ण पक्ष है । इस चर्चा में उनका मुख्य विवेच्य विषय द्रव्य, गुण एवं पर्याय का पारस्परिक भेदाभेद सम्बन्ध ही रहा है और हमने भी प्रस्तुत शोधप्रबन्ध में उसे ही उभारने का प्रयत्न किया है । जैसा हम पूर्व में निर्देश कर चुके हैं कि जैन दर्शन जगत के परवर्ती मध्ययुग के यशस्वी चिन्तकों में उपाध्याय यशोविजयजी एक महत्त्वपूर्ण नक्षत्र के रूप में उभर कर सामने आ रहे हैं। जैनविद्या के क्षेत्र में अभी तक जो भी शोध कार्य हुए हैं, उनमें उपाध्याय यशोविजयजी की उपेक्षा ही देखी जा रही है। उनके अनेक प्रौढ़ दार्शनिक ग्रन्थ होने पर भी उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का दार्शनिक दृष्टि से अध्ययन उपेक्षित ही रहा है । उपाध्याय यशोविजयजी न केवल जैन दर्शन के गंभीर अध्येता रहे हैं, अपितु वे अन्य भारतीय दर्शनों एवं साधना विधियों के भी गंभीर अध्येता माने जा सकते हैं। उनके अध्यात्मोपनिषद्, अध्यात्मसार, ज्ञानसार आदि आध्यात्म क्षेत्र की बहुत ही महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं । इसी प्रकार नयप्रवेश, नयप्रदीप, नयरहस्य आदि ग्रन्थ अनेकान्तवाद के पोषक प्रमुख ग्रन्थ हैं। उनका प्रस्तुत 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' भी द्रव्य, गुण और पर्याय के सहसम्बन्ध को लेकर अनेकान्त दृष्टि से जैन तत्त्वमीमांसा पर लिखा गया महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । अभी तक उपाध्याय यशोविजयजी के अध्यात्मोपनिषद्, ज्ञानसार और अध्यात्मसार के अतिरिक्त किसी भी ग्रन्थ पर समीक्षात्मक दृष्टि से कोई कार्य नहीं हुआ है। उपाध्याय यशोविजयजी की यह विशेषता है कि उन्होंने न केवल जैन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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