Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan Author(s): Priyasnehanjanashreeji Publisher: Priyasnehanjanashreeji View full book textPage 8
________________ अवधारणाओं के मध्य समन्वय करने का प्रयत्न किया है। इस प्रकार प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध का मुख्य विषय द्रव्य, गुण और पर्याय की अवधारणाओं में ऐतिहासिक विकासक्रम तथा तद्सम्बन्धी अन्य दार्शनिक मान्यताओं से उनकी विभिन्नता दिखाकर विरोधी अवधारणाओं के मध्य समन्वय दिखाना ही रहा है। प्रस्तुत गवेषणा में हमने प्रथम अध्याय में ग्रन्थ, और ग्रन्थ की विषयवस्तु तथा ग्रन्थकार और उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व की चर्चा की है। ग्रन्थ के द्वितीय अध्याय में हमने जैनदर्शन में अनेकान्तवाद एवं नयसिद्धान्त की चर्चा की है। प्रस्तुत अध्ययन में इस चर्चा के साथ-साथ विभिन्न नयों के आधार पर द्रव्य, गुण और पर्याय के पारस्परिक सम्बन्ध को स्पष्ट किया गया है। उपाध्याय यशोविजयजी ने अपने ग्रन्थ 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' के पांचवी, छठी एवं सप्तमी ढालों में नयों की और उनके उप-प्रकारों की विस्तृत चर्चा की है। यद्यपि इस संदर्भ में उन्होंने देवसेन के नयचक्र को आधार बनाया है। किन्तु आवश्यकता होने पर उनके नय विभाजनों की समीचीन समीक्षा भी की है। श्वेताम्बर परम्परा में नयों की इतनी विस्तृत और तार्किक चर्चा उपाध्याय यशोविजयजी के अतिरिक्त अन्य किसी ने नहीं की है। ___शोधग्रन्थ का तीसरा अध्याय मुख्य रूप से द्रव्य की अवधारणा से सम्बन्धित है। इसमें यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि पंचास्तिकाय की अवधारणा से षद्रव्य की अवधारणा किस रूप से और कैसे विकसित हुई ? इसी अध्याय में समालोच्य ग्रन्थ एवं अन्य ग्रन्थों के आधार पर विभिन्न द्रव्यों के स्वरूप आदि की भी चर्चा की गई है। चतुर्थ अध्याय में जैनदर्शन की गुणों की अवधारणा की चर्चा की गई है। इसमें गुण की परिभाषा, जैनदर्शन में गुण शब्द के विभिन्न अर्थों का विकास, गुणों की संख्या तथा उनके प्रकार आदि की चर्चा की है। जहाँ तक मेरी जानकारी है, गुणों के संदर्भ में जितनी सुव्यस्थित व्याख्या उपाध्याय यशोविजयजी ने 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में दी है, उतनी अन्यत्र अनुपलब्ध है। इसी अध्याय में जैनदर्शन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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