Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Author(s): Priyasnehanjanashreeji
Publisher: Priyasnehanjanashreeji

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Page 4
________________ मरहट्ट अपभ्रंश से ही हुआ है। आज तक इस ग्रन्थ का न तो हिन्दी या अंग्रेजी भाषा में कोई अनुवाद हुआ है और न व्याख्या ही लिखी गई है। मात्र गुर्जर भाषा में ही इसकी दो व्याख्याएँ मिलती हैं। उनमें भी एक व्याख्या धीरजलाल डायालाल महेता की है जो दो भागों में प्रकाशित है। दूसरी व्याख्या अभयशेखर सूरि ने लिखी है । किन्तु अभी तक उसका एक ही भाग प्रकाशित हुआ है। 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' पर दिगम्बर विद्वान भोजसागर कवि ने 'द्रव्यानुयोगतर्कणा' नामक संस्कृत टीका बनाई है । 2 प्रस्तुत ग्रन्थ जैन ज्ञानमीमांसा और तत्त्व - मीमांसा के विकास की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण है। यही कारण है कि हमने उपाध्याय यशोविजय जी के इस ग्रन्थ के दार्शनिक अध्ययन को अपने शोध विषय के रूप में चयनित किया । यद्यपि जैन दर्शन के क्षेत्र में द्रव्य, गुण, पर्याय की सामान्य चर्चा अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध हो जाती है, किन्तु द्रव्य, गुण पर्याय के पारस्परिक सम्बन्ध और द्रव्य, गुण पर्याय के विशिष्ट प्रारूपों और प्रकारों की विस्तृत चर्चा सामान्यतया जैन ग्रन्थों में प्रायः कम ही उपलब्ध होती है। द्रव्य, गुण, पर्याय का पारस्परिक सम्बन्ध सदा ही जैन दार्शनिकों के लिए गंभीर चिंतन का विषय रहा। किन्तु किसी ने भी इस विषय पर विस्तृत चर्चा की अपेक्षा से कलम नहीं चलाई। जहाँ तक मेरी जानकारी है, यशोविजयजी ही ऐसे दार्शनिक हैं, जिन्होंने इस विषय पर गंभीर चर्चा की। मूलग्रन्थ अपेक्षाकृत छोटा है, फिर भी इसमें 17 ढालें और लगभग 284 दोहे हैं । किन्तु इस पर उपाध्याय यशोविजयजी ने जो व्याख्या लिखी है वह लगभग 400 पृष्ठों से अधिक की ही है। इससे शोध विषय का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है । प्रस्तुत कृति में उपाध्याय यशोविजयजी ने न केवल अपने अनेक पूर्ववर्ती दार्शनिकों और उनके ग्रन्थों एवं मतों का उल्लेख किया है, अपितु अनेक आगम ग्रन्थों एवं आगमिक व्याख्याओं का भी उल्लेख किया है। इसमें उन्होंने न केवल श्वेताम्बर परंपरा के दार्शनिकों एवं उनकी कृतियों का निर्देश किया है, अपितु दिगम्बर और जैनेतर परम्पराओं के ग्रन्थों और उनके मन्तव्यों का भी उल्लेख किया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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