Book Title: Diye se Diya Jale Author(s): Tulsi Acharya Publisher: Adarsh Sahitya Sangh View full book textPage 8
________________ रहते हैं। इन दिनों में धर्म की आराधना करने वाला अपने जीवन को सार्थक बना लेता है। जिस व्यक्ति के जीवन के पल धर्मशून्य होते हैं, वह लुहार की धौंकनी की तरह श्वास लेता हुआ भी जीवित नहीं है। विश्वास या आत्मविश्वास से व्यक्तित्व का निर्माण होता है। जिसका विश्वास चुक जाता है, उसका व्यक्तित्व धुंधला जाता है। यह किसी शास्त्र की नहीं, अनुभव की वाणी है। यह अनुभव जन-जन का अनुभव बने, ऐसा मुझे अभीष्ट है। इस दृष्टि से मैं अपने प्रवचनों, लेखों और संवादों में आत्मविश्वास को सुरक्षित रखने पर बल देता रहा हूं। विश्वास की ज्योति पर आई राख को हटाकर उसे पुनः प्रज्वलित करने में साहित्य की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण हो सकती है। आज रेडियो, टी. वी., वी. सी. आर आदि श्रव्य और दृश्य माध्यमों ने साहित्य के आकर्षण को कम किया है। फिर भी उसके दीर्घकालीन प्रभाव को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। वर्तमान पत्र-पत्रिकाओं की भीड़ में नैतिक चेतना का संवाहक एक पाक्षिक पत्र है अणुव्रत। यह नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा में सतत जागरूक है। इसके माध्यम से मैं अपने विचारों को हजारों पाठकों तक पहुंचा रहा हूं। उन विचारों को संकलित कर साध्वी-प्रमुखा कनकप्रभा ने एक पुस्तक तैयार की-'बैसाखियां विश्वास की।' पाठकों ने उस पुस्तक को पढ़ा तो उन्हें अपने डोलते हुए विश्वास को स्थिर करने में एक सशक्त आलम्बन मिला। . विश्वास की बैसाखियों के सहारे चलने वाले व्यक्ति अपने पथ में अंधेरा देखकर एक बार सहम जाते हैं। ऐसे लोगों के लिए एक ऐसे दीये की अपेक्षा है, जो उनके पथ को आलोकित कर सके। एक दीया हजार दीये जला सकता है। इस प्रेरणा से अभिप्रेरित हो साध्वी-प्रमुखा ने मेरे विश्वास से निःसृत विचारों के उच्छ्वासों को संकलित कर दीये से दीया जले' पुस्तक सम्पादित कर दी। अध्यात्म और नैतिकता में रुचि रखने वाले पाठक इसे पढ़कर अपने खोए हुए विश्वास का दीया जलाएंगे और अपने जीवन का पथ आलोकित करेंगे, ऐसा विश्वास है। -गणाधिपति तुलसी जैन विश्व भारती, लाडनूं-३४१ ३०६ २१ जून १६६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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