Book Title: Diksha Dharm Author(s): Unknown Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 5
________________ [ ३ ] धर्मकी व्याख्या और आशय दुर्गति से जो बचाता है वह धर्म है, ऐसी धर्मकी व्याख्या है । विविध नामों के बहुत धर्म हैं, लेकिन उन सब धर्मोका आशय कर्मछेदन करके चिरस्थायी सुखकी प्राप्ति ही है और सब आत्माओंमें परस्पर कम घर्षण हो ऐसे उपायोंको बताते हैं । धर्मने मनुष्यकी शांति और सुखके लिये नीति-नियम बनाये हैं और क्रमशः शांतिमय जीवनसे आत्माकी मुक्तिका मार्ग बताया है । धर्मका आदर्श जिसने धर्मकी स्थापनाकी है उसको मनुष्य अपने धार्मिक जीवन का आदर्श बना लेता है और उसको अपने सामने रख कर यथाशक्ति अपना आत्म विकास कर रहा है । अनुयायीके दो वर्ग धर्मके दो प्रकारके अनुयायी होते हैं । एक वर्ग तो, जो आदर्श माना गया है उसको ही अक्षरशः सर्व शक्ति लगा कर, अनुसरता है और दूसरा वर्ग विशेष कर्मबद्ध जीव जो अपनी सुविधाको रखता है और कठिनाइयोंको न सहते तारकके बताये हुए मार्ग से आत्म हित साधता है । पहिले वर्गका एक ही काम है और वह केवल तारकके मार्ग पर चलनेका । वह सांसारिक तमाम प्रवृत्तियोंका त्याग करता है इसीलिये इस वर्ग के व्यक्ति त्यागी कहलाते हैं । त्यागी वर्ग आत्म विकास के मार्ग में प्रत्येक धर्मका त्यागी वर्ग संसारी धर्मानुयायीको उपकारी होनेसे और शांत जीवन बितानेसे पूज्य होता है और उसकी संसारी लोग यथाशक्ति भक्ति करते हैं । इतना ही नहीं बल्कि उनकी सेवा के लिये उपयोग किये गये साधन और शक्ति सच्चे सुख साधक हैं ऐसा मानते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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