Book Title: Diksha Dharm
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 7
________________ २ : दृष्टि विकार वर्तमान आज पवित्र दीक्षा बहुतोंके मन अनावश्यक-सी मालूम होती है । इसका कारण वर्तमान भौतिक युगकी भावना है । शरीर और आत्मा जीवनमें दो तत्त्व मुख्य हैं:-(१) आत्मतत्त्व और (२) जड़तत्त्व । जड़ परमाणुओंसे सने हुए इस शरीरमें अनन्त कर्म बन्धनोंको उच्छेद .. करनेवाली आत्मा आबद्ध हुई। जब आत्मा जाग्रत होता है तब वह शरीरसे अपने भृत्य की तरह काम लेता है और मुक्ति तककी उन्नति कर सकता है। आत्मा यदि सुप्त अवस्थामें हो तो वह मोह का निमित्तभूत बन कर पौद्गलिक सुखमें मग्न होकर निगोदमें जाता है। माता-पिताका कर्तव्य जो ज्ञानी हैं उनको बाल्यावस्थासे हो बालकोंमें धर्मके संस्कार डालने चाहिए और प्रत्येक क्षण विकसित करने चाहिए। बाल्यावस्था ग्रहणकाल है अतएव तब डाले गये धार्मिक या अधार्मिक संस्कार जीवन भर टिकते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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