Book Title: Diksha Dharm
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 6
________________ [४] इस.पूज्य बुद्धिका कारण इसका कारण यही है कि त्यागियोंने जो मार्ग लिया है वह धर्मिष्ट के लिये आदर्श है अतएव त्यागमार्ग समग्र विश्वका पूज्यनीय और आराध्य है और यही कारण है कि उसके आराधक सर्वत्र पूज्य हैं। संसारी के मुकाबिले में उनका जीवन विशेष स्थिर और विशेष शांत है । इस सुख-शांति का कारण है-आत्माकी सांसारिक प्रवृत्तिमार्गमें अरुचि और जहां यह जितनी ही ज्यादा है वहां उतना ही विशेष सुख, शांति और निर्भयता है। संसार-चक्रके तमाम बंधनों और संसारके सभी व्यवहारोंका त्याग कर देनेसे ही सभी धर्म में त्यागका और त्यागी स्थान सर्वोच्च है। धर्मका मार्ग जिन्होंने सच्चा सुख प्राप्त किया है और जिन उपायोंसे किया है वे दूसरोंको उन उपायोंका प्रयोग करने के लिये ही समझायेंगे। प्रत्येक धर्म स्थापक ऐसा ही करते हैं और अंतिम आदर्शकी प्राप्तिके लिये धर्म मात्रका वही मार्ग है। विविध धर्मोके तत्त्वोंमें समानता । जगतके धर्मो के मूलभूत सिद्धान्तमें बहुत साम्य है अर्थात् उनमें विरोध नहीं होता। सिर्फ धर्मोकी गणना औरतत्त्व ज्ञानमें सूक्ष्म स्थूलकी मात्रा का भेद होता है लेकिन अहिंसा, सत्य, अस्तेय और ब्रह्मचर्य या तो दूसरे रूपमें दान, शील, तप और भावनाकी तो प्रत्येक धर्ममें मूलगत जरूरत है। दीक्षा धर्म और दीक्षित पूज्य है इन मूलभूत सिद्धान्तोंके पालनके लिये जीवन समर्पण और सांसारिक व्यवहार और बंधनका त्याग करना यह है धर्म दीक्षा और उसी मार्गसे अपना हित सिद्ध कर दूसरोंको हित सिद्ध करनेका आदर्श प्रकट करना वह प्रत्येक दीक्षितका कर्तव्य है। जहां धर्म है, जहां आत्मविकासकी भावना है, जहां परभव और जन्म मरण का भय है वहां दीक्षा हमेशा धर्म ही रहेगा और दीक्षित पूज्य रहेंगे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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