Book Title: Digambar Jain Siddhant Darpan Author(s): Makkhanlal Shastri Publisher: Digambar Jain Samaj View full book textPage 9
________________ [ग] वेद के साथ क्षपक श्रेणी चढ़ सकता है। ३- किन्तु यह व्याख्यान संतोषजनक नहीं है क्योंकि (१) सूत्रों में जो योनिनी शब्द का उपयोग किया गया है वह द्रव्य स्त्री को छोड़ अन्यत्र घटित ही नहीं हो सकता। (२) जहां वेद मात्र की विवक्षा मे कथन किया गया है वहां वें गुणस्थान तक का ही कथन किया गया है, क्योंकि उससे ऊपर वेद रहता ही नहीं है। (३) कर्मसिद्धान्त के अनुसार वेदवैषम्य सिद्ध नहीं होता। भिन्न इन्द्रिय संबंधी उपांगों की उत्पत्तिका यह नियम बतलाया गया है कि जीवक जिस प्रकार के इन्द्रिय ज्ञान का क्षयोपशम होगा उसी के अनुकूल वह पुद्गलरचना करके उसको उदय में लाने योग्य उपांगकी प्राप्ति करेगा। चक्षुइन्द्रिय आवरणके क्षयोपशम में कर्ण इन्द्रियको उत्पत्ति कदापि नहीं होगी और न कभी उसके वारा रूपका ज्ञान हो सकेगा। इसी प्रकार जीवमें जिस वेदका वन्ध होगा उसी के अनुमार वह पुनलारचना करेगा और तदनुकूल ही उपांग उत्पन्न होगा। यदि ऐसा न हुआ तो वह वेद ही उदयगें नहीं आ सकेगा। इसी कारण तो जीवनभर वेद बदल नहीं सकता । यदि किसी भी उपांग सहित कोई भी वेद उदय में आ सकता हो कपायों व अन्य नोकपायों के ममान वेइके भी जीवन में बदलने में कौनसी आपत्ति श्रा सकती है ? (४) नौ प्रकार के जीवोंकी तो कोई संगति ही नहीं बैठती, क्योंकि द्रव्यमें पुरुष और स्त्रीलिंग के सिवाय तीसराPage Navigation
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