Book Title: Digambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 07
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 14
________________ १२] 97 १२- सुरत १३ - नागौर ( जोधपुर ) १४- जैपुर गोपीपुरा र १५ - उदयपुर दि० जैन अग्रवाल मंदिर १६ - इन्दौर उदासीनाश्रम व मारवाड़ी दिगम्बर जैन मंदिर १७- झालरापाटन मंदिर शांतिनाथ व सरस्वती भवन दिगम्बर जैन । १८- बम्बई दि० जैन मंदिर तेरापंथी व ऐलक महाराज पन्नालाल सरस्वती भवन १९- दिइली धर्मपुरा पंचायती व नया दि० जैन मंदिर 59 २०- आगरा दि० जैन मंदिर मोतीकटरा . २१ - मैनपुरी २१- वटेश्वर " २१- आरा जैन सिद्धांत भवन २४- कलकत्ता दि० जैन मंदिर २९ - सीकर २६ - अजमेर २७ - महुआ जिला सुरत २८ - सागवाड़ा (मेवाड़ ) जहां २ प्राचीन संस्कृत प्राकृत ग्रंथोंकी संभावना है उनके कुछ नाम ऊपर दिये हुए हैं । यदि साहित्य परिषद जैन साहित्यको अनेक भाषाओं में अनेक देशोंमें प्रचार करनेके लिए कोई योजना करके यथोचित द्रव्य व प्रबंधकी व्यवस्था करेगी तो मैं इस परिषदका अधिवेशन सफल समझंगा । जैन साहित्य प्रचारका प्रेमी ब्र० शीतलप्रसाद । >> [ वर्ष दिनचर्या । මෙමෙමේ (लेखक: - पं० अभयचंद काव्यतीर्थ- इन्दौर (1) -[ विशेषांक से आगे ] कोई यह समझकर कि अधिक खानेसे अनेक रोग पैदा हो जाते हैं बहुत ही थोड़ा खाने लगे तो वह भी उल्टे रास्तेपर है क्योंकि पाचनशक्ति बढ़ी हुई है और हलके निस्सार पदार्थ खानेको मिलें ऐसी हालत में उस पाचन शक्तिको पूरा दह्य ( पचाने लायक ) इंधन ( भोजन ) नहीं मिलने से शरीरकी धातुओंका पाक करती है । जिससे शरीर के बल, वीर्य, ओजका नाश होता है । जो बहुत ज्यादा भोजन करते हैं उनके आहारका परिपाक बड़ी मुश्किलसे होता है । थके हुए आदमीको उचित है कि जबतक थकावट दूर न हो न भोजन करे और न पानी पिये ऐसा नहीं करनेसे, बुखार, वमन, अनीर्ण आदि रोग पैदा हो जाते हैं । जिस समय पेशाब पाखाना जानेकी इच्छा हो, चित्त खिन्न हो, बहुत अधिक प्यास लगी हो उस समय भोजन न करे अर्थात् इन सब बाधाओं को दूर करके भोजन करे । भोजन करनेके बाद शीघ्र ही व्यायाम और मैथुन करनेसे भोजनका परिपाक अच्छी तरह से नहीं होता और कभी २ उदरशूल व वमन भी होने लगती है । जन्म से लेकर जो चीज खाने पीने व लगामेमें उपयोग करने से अनुकूल पड़ जाती है वह

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