Book Title: Dharmpariksha Ras
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ मपरि 1 ॥ अनिधान ॥ १७ ॥ मनोवेग नामे कुमार, देखी रंजे सहु नरनार ॥ नणी गणीने खंग? प्रौढो थयो, मात पिता मन आनंद नयो ॥ १७ ॥ शीखी विद्या नवनवी रीत, मी बोले वाधे प्रीत ॥ वन उपवनना खेले ख्याल, जीव नाषाना जोवे फाल ॥ १५ ॥ जमी मूलीना जाणे नेद, मंत्र जंत्रथी पूरे उमेद ॥ ढाल नेमविजये ए कही, प्रथम खंडनी पदेली सही ॥२०॥ मुहा. जो वैताढ्य गिरि थकी, उत्तर श्रेणि कहाय ॥ दश जोजन पूरे कयां, साठ नगर) समुदाय ॥१॥ एक एक नगर प्रत्ये कह्यां, कोम कोम बे गाम ॥ मानव लोक वसे तिहां, विद्याधरनां गम ॥२॥ साठ नगरमां शोजतुं, नयर विजयपुर नाम ॥ लंक समोवम जाणीए, अलखत ने श्रनिराम॥३॥प्रजास नामे नूपति, पाले राज अखंग॥ मान्य करे मिथ्यातने, पापी मांहे प्रचंड ॥ ४॥ विपुला राणी तेहनी, सुख जोगवतां| सार ॥ पुत्र थयो एक एहवो, पवनवेग कुमार ॥५॥ जोवन पाम्यो अनुक्रमे, मिथ्या-|||॥२॥ मतनी बुकि ॥ माने नहीं जिनधर्मने, एहवी जेनी शुफि॥६॥ विद्या तण) शकते करी, उमी जाय आकाश ॥ फिरतो हरतो यावी, मनोवेगनी पास ॥७॥बे जण

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 336