Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhuvanbhanusuri
Publisher: Andheri Gujarati Jain Sangh
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૧૦૮ બાલ સંગ્રહ
नादिक छद्मस्थ दुष्ट जाणइ छइ तो पणि भगवंतई अपवादि आदरिउ छइ, तथा निषिद्ध : वस्तु लाभ जाणी उत्तमपुरुषई आदरी ते अदुष्ट कही अपवाद न कहि तो अपवाद किहाई न हुई ॥६४॥
'जाणीनइ जीवघात करइ तेह ज आरंभक कहइ छईते न मिलई, (जे) माटई इम कहतां एकेन्द्रियादिक सूत्र आरंभी कहिया छइ ते न घटइ ॥६६।।
___"आभोगइ जीवहिंसा अवश्यभाविणिइ पणि यति न हुइ ज, नदी ऊतरतां जलजीव विराधना हुई छईते पण सचित्तता निश्चय नथी ते भणी अनाभोगजन्याशक्यपरिहारइ" एहवु कहई छई ते न घटई- जे माटई व्यवहार-सचित्तता न आदरिइं तो सघलई शंका न मिटई, तथा नदीमां अनंतकाय निश्चय सचित्तपणि छई, आगमथी निश्चय थइ पणि देख्या विना अनाभोग कहिई तो विश्वासी पुरुषइ कहिया जे वस्त्रादिकई अंतरित त्रसजीव तेहनी विराधनाइ पणि अनाभोग थाई॥६७॥
___ “यतिनइ अनाभोगमूल ज (जे) हिंसा हुई तेहमां स्थावर सूक्ष्म त्रसनो अनाभोग केवलज्ञान विना न टलई अनइं कुन्थुप्रमुख स्थूल त्रसनो अनाभोग घणी यतनाई टलई, अत एव नदी ऊतरतां जल संयम दुराराध न कहिउ पणि कुंथुनी उत्पत्ति कहिउ. ते मादई नदी ऊतरतां जीवनई अनाभोगई संयम न भा(भां)जई" एहवी कल्पना करइ छइ ते खोटी- जे माटई त्रसनी परि थावरनो आभोग पणि यतिनई करवो कहिओ छई. अत एव ८ सूक्ष्मादिक जीवोनी यतना दशवैकालिकादिक ग्रंथई प्रसिद्ध छई ॥६८।। - एजनादिक्रियायुक्तस्यारम्भाद्यवश्यम्भावाद्यदागमः. जाव णं एस जीवे एयइ वेयइ चलइ फंदइ इत्यादि यावदारंभे वई' इत्यादि एहQ प्रवचनपरीक्षाई लुपकाधिकारई कहिउ छई, अनई सर्वशशतकइ केवलीनई अवश्य भावी पणि आरंभ निषेध्यो छई ए परस्पर विरुद्ध ॥६९।।
___"विनापवाद जाणी जीवघात करइते असंयत हुई" एहवं कहइ छई ते खोटु-जे माटई अपवादई आभोगई हिसाई पणि जिम आशयशुद्धताथी दोष नहि तिम अपवाद विना अशक्यपरिहार जीवविराधनाइ पणि आशयशुद्धताइज दोष न हुई, नहीं तो विहारादिक क्रिया सर्व दुष्ट थाई ॥७०॥ ' सिद्धांतथी विराधनानो निश्चय थइ पोतानइ अदर्शनमात्रई जो विहारादिक क्रियामा जे विराधना छई ते अनाभोगइ ज कहिइ तो निरंतर जीवाकुल भूमि निर्धारी तिहां रात्रिविहार करतां विराधनानो अनाभोग ज कहवाइ ।।७१।।
. "नदी ऊतरतां आभोगई जलजीव विराधना यतिनइ हुई तो जलजीवघातइ विरति . परिणाम खंडित हुइ ते भणि देशविरति थाइ, जाणीनई एकवतभंगई सर्वविरति रहइ तो सम्य
ग्दृष्टि सर्वनई चारित्र लेतां बाधक न हुई" एहवु कहई छई ते न घटइ-जे माटइ नदी ...ऊतरतां द्रव्यहिंसाई आज्ञाशुद्ध पणिज दोष नथी । तथा सम्यग्दृष्टि योग्यता जाणींनइज " चारित्र आइरई जिम व्यापारी व्यापार प्रति, पछइ थोडी खोटी होई अनई संभाली ....लिई तो बाधा नहीं, पणि पहिला खोटिज जाणी कोइ सबला व्यापार आदरइ नहीं ते - प्रीछवु ॥१॥

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