Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhuvanbhanusuri
Publisher: Andheri Gujarati Jain Sangh

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Page 548
________________ કેવલિદ્રવ્યહિંસા વિચાર ५०३ पणि तेवो ज ते हुई, युक्ति सरिखी छइ, ते माटइ 'मोहनीय कर्म हुई तिहां ताइ जीवघातकर्ता कहिइ” एह वचन पणि प्रमाणिक नहीं, जे माटई प्रमादी ज प्राणातिपातकर्ता कहिओ छइ इत्यादिक इहां विचारबु ।।८।। "प्रायइ असंभवी कदाचित् संभवइ ते २ अवश्यभावी कहिइ', एहवो जीवघात अनाभोगइ छद्मस्थ संयतनई हुइ पणि केवलीनई न हुई" एहवु कहई छई ते न घटइं, जे माटई अनभिमतपणइ पणि अवर्जनीय ते अवश्यभावी कहिई, तेवो द्रव्यवध अनाभोग विणा पणि संभवई जिम यतीनई नदी उतरतां ॥८२॥ - "केवलीना योग ज जीवरक्षानु कारण" एहवु कहई छई तेहनई मतई चउदमई गुणठाणइ जीवरक्षाकारण योग गया ते माटई हीनपणु थयु जोइइ ।।८३।। ___केवलीनई बादरवायुकाय लगइ तिवारई तथा नदी उतरतां अवश्यभाविनी जीवविराधना थाई, तिहां जे एहवं कल्पई छई बादर वायुकाय अचित्त न (ज) केवलीनई लागई तथा नदी उतरतां केवलीनई जल अचित्तपणईज परिणमईतिहां कोइ प्रमाण नथी, केवलि योगनो ज एहवो अतिशय कहिई तो उल्लंघन-प्रलंघन-प्रतिलेखनादि व्यापारनु निरर्थकपणु थाई ॥८४॥ ___एणज करी ए कल्पना निषेधी जो केवली गमनादि परिणत हुईति वारई आपई ज कीडी प्रमुख जीव ओसरइ अथवा ओसरिया ज हुई पणि केवलीनी क्रियाई प्रतिक्रिया न करई, जे माटई इम कहतां जीवाकुल भूमि देखी केवलीनई उल्लंघनादि व्यापार पन्नवणासूत्रमा कहिओ छई ते न मिलई तथा वस्त्रप्रतिलेखना पणि न मिलइ ।।८५।। "अभयदयाणं"ए सूत्रनी मेलइ भगवंतना शरीरथी जीवनइ सर्वथा भय न ऊपजई" एहवं कहइ छइ ते न मिलइ, जे माटई भगवंत वस्त्रादिकथी जीव अलगा मूकई तेहनइ भय विना अपसरण न संभवइ तथा 'अभययाणं' ए वचनई केवलीना शरीरथी कोइनइ भय न ऊपजइ एहQ कल्पिई तो 'मंता मतिमभयं विदित्ता' इत्यादिक सूत्रनी मेलई यतिमात्रना शरीरथी जीवनई भय ऊपजवो न घटई ॥८॥ श्रीवर्धमानने देखी हाली नाठो तिहां कोइ इम कल्पना करइ छइ जे “तिहां हालीना योग कारण पणि भगवंतना योग कारण नहीं" ते अतिखोटुं, जे माटइ 'भगवंत दळूण धमधमेइ' एहवु व्यवहारचूर्णि कहिउछइ तेहनई अनुसार भगवंतना योग ज तिहां कारण जणाई छई तथा अन्यकर्त्तक भय तेरमई गुणठाणइ हुई तो चउदमा गुणठाणानी परि अन्यकत्र्तक हिंसा पणि हुई जोइइ ते तो स्वमत विरुद्ध ॥८॥ ___ 'सव्वजिआणमहिंसा' इत्यादिक सूत्रनी मेलई जे केवलीनई अवश्यभाविनी हिंसा ऊथापई छई तेहनई मतइ 'हिंसाइ दोस सु(मु)त्ता' इत्यादिक सूत्रनी मेलई सामान्य साधुनई पणि ते ऊथापी जोईई ॥ ८८ ॥ "जलचारणादिक लब्धिमंत यतिनई जलादिकमां चालतां जलादिक जीवनो घात जो न हुई तो सर्वलब्धिसंपन्न केवलीनई ते किम हुई' एहवु कहइ छई ते न घटई, जे मादई लब्धिफल सर्व केवलीनई छई तो पणि लब्धिप्रयोग नथी ।।८९।।

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