Book Title: Dharma ka Marm
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 72
________________ का कर्ता दिखाई दे किन्तु वह सच्चे अर्थ में लोकहित का कर्ता नहीं है। अत: जैन दर्शन ने आसक्ति से या राग से ऊपर उठकर, लोकहित करने के लिए एक यथार्थ भूमिका प्रदान की। सराग लोकहित या फलासक्ति से युक्त लोकहित छद्म स्वार्थ ही है। अत: भारतीय दर्शन में अनासक्ति एवं वीतरागता के प्रत्यय पर जो कुछ बल दिया है वह समाजिकता का विरोधी नहीं है। सामान्यतया जैन दर्शन के संन्यास के प्रत्यय को समाज निरपेक्ष माना जाता है किन्तु क्या संन्यास की धारणा समाज-निरपेक्ष है? निश्चय ही संन्यासी पारिवारिक जीवन का त्याग करता है किन्तु इससे क्या वह असामाजिक हो जाता है? संन्यास के संकल्प में वह समता (सामायिक) को स्वीकार करता है और ममता का परित्याग करता है किन्तु क्या धन-सम्पदा, सन्तान, परिवार आदि के प्रति ममता का परित्याग समाज का परित्याग है? वस्तुत: समस्त एषणओं का त्याग स्वार्थ का त्याग है, वासनामय जीवन का त्याग है। संन्यासी का यह संकल्प उसे समाज-विमुख नहीं बनाता हैं, अपितु समाजकल्याण की उच्चतर भूमिका पर अधिष्ठित करता है क्योंकि सच्चा लोकहित नि:स्वार्थता एवं वीतरागता की भूमि पर स्थित होकर ही किया जा सकता है। जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म संन्यास को समाज-निरपेक्ष नहीं मानता है। भगवान् बुद्ध का यह आदेश 'चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजन-हिताय बहुजन-सुखाय, लोकानुकम्पाय अत्थाय हिताय सुखाय देव मनुस्सानं (विनयपिटक, महावग्ग) संन्यासी का सर्वोपरि कर्तव्य बताता है। अतः हम कह सकते हैं कि भारतीय दर्शन में संन्यास की जो भूमिका प्रस्तुत की गई है वह सामाजिकता की विरोधी नहीं है। संन्यासी क्षुद्र स्वार्थ से ऊपर उठकर खड़ा हुआ व्यक्ति होता है जो आदर्श समाज-रचना के लिए प्रयत्नशील रहता है। अब हम मोक्ष के प्रत्यय की सामाजिक उपादेयता पर चर्चा करना चाहेंगे। राग-द्वेष सामाजिक जीवन के लिए बाधक हैं। यदि इन मनोवृत्तियों से मुक्त होना ही मुक्ति का हार्द है तो मुक्ति का सम्बन्ध हमारे सामाजिक जीवन के साथ जुड़ा हुआ है। मोक्ष एक मरणोत्तर अवस्था नहीं है अपितु वह हमारे जीवन से सम्बन्धित है। मोक्ष को पुरुषार्थ माना गया है। इसका तात्पर्य यह है कि वह इसी जीवन में प्राप्तव्य है जो लोग मोक्ष को एक मरणेत्तर अवस्था मानते हैं वे मोक्ष के वास्तविक स्वरूप से अनभिज्ञ 66 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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