Book Title: Dharma ka Marm
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 74
________________ में, समाज में विलीन कर दे। इस प्रकार यह धारणा कि मोक्ष का प्रत्यय सामाजिकता का विरोधी है, गलत है। मोक्ष वस्तुतः दुःखों से मुक्ति है और मनुष्य जीवन के अधिकांश दुःख मानवीय संवेगों के कारण ही हैं। अतः मुक्ति ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, घृणा आदि के संवेगों से मुक्ति है और इस रूप में वह वैयक्तिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टि से उपायदेय भी है। दुःख, अहंकार एवं मानसिक क्लेश से मुक्ति रूप में मोक्ष की उपादेयत और सार्थकता को अस्वीकार भी नहीं किया जा सकता है। - अन्त में हम कह सकते हैं कि जैन दर्शन की दृष्टि पूर्णतया सामाजिक और लोकमंगल के लिये प्रयत्नशील बने रहने की है। उसकी एकमात्र मंगल कामना है। सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात् ।। Jain Education International 68 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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