Book Title: Dharm aur Vidya ka Tirth Vaishali Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 1
________________ धर्म और विद्याका तीर्थ वैशाली । उपस्थित जनो, जबसे वैशाली संघकी प्रवृत्तियों के बारेमें थोड़ा बहुत जानता रहा हूँ तभी से उसके प्रति मेरा सद्भाव उत्तरोत्तर बढ़ता रहा हैं । यह सद्भाव आखिर मुझे यहाँ लाया है । मैंने सोचकर यही तय किया कि अगर संघके प्रति सद्भाव प्रकट करना हो तो मेरे लिए संतोषप्रद मार्ग यही है कि मैं अपने जीवन में अधिक बार नहीं तो कससे कम एक बार, उसकी प्रवृत्तियों में सीधा भाग लूँ । संघ के संचालकोंके प्रति श्रादर व कृतज्ञता दर्शानेका भी सीधा मार्ग यही है | मानव मात्रका तीर्थ दीर्घतपस्वी महावीरकी जन्म भूमि और तथागत बुद्धकी उपदेश - भूमि होनेके कारण वैशाली विदेहका प्रधान नगर रहा है। यह केवल जैनों और बौद्धका ही नहीं, पर मानव जातिका एक तीर्थ बन गया है । उक्त दोनों श्रमणवीरोंने करुणा तथा मैत्रीकी जो विरासत अपने-अपने तत्कालीन संघों के द्वारा मानव जातिको दी थी उसीका कालक्रमसे भारत और भारत के बाहर इतना विकास हुआ है कि आजका कोई भी मानवतावादी वैशालीके इतिहासके प्रति उदासीन रह नहीं सकता । मानवजीवन में संबंध तो अनेक हैं, परन्तु चार संबंध ऐसे हैं जो ध्यान खींचते हैं -- राजकीय, सामाजिक, धार्मिक और विद्याविषयक । इनमें से पहले दो स्थिर नहीं | दो मित्र नरपति या दो मित्र राज्य कभी मित्रतामें स्थिर नहीं । दो परस्परके शत्रु भी अचानक ही मित्र बन जाते हैं, इतना ही नहीं शासित शासक बन जाता है और शासक शासित । सामाजिक संबंध कितना ही निकटका और रक्तका हो तथापि यह स्थायी नहीं । हम दो चार पीढ़ी दूरके संबंधियोंको अकसर बिलकुल भूल जाते हैं । यदि संबंधियोंके बीच स्थान की दूरी हुई या आना-जाना न रहा तब तो बहुधा एक कुटुम्ब के व्यक्ति भी पारस्परिक संबंधको भूल जाते हैं । परन्तु धर्म और विद्याके संबंधकी बात निराली है । किसी एक धर्मका अनुगामी भाषा, जाति, देश, आदि बातों में उसी धर्मके दूसरे अनुगामियोंसे बिल्कुल ही जुदा हो तब भी उनके बीच धर्मका तांता ऐसा होता है: मानों वे एक ही कुटुम्ब के हों । चीन, तिब्बत जैसे दूरवर्ती देशोंका बौद्ध जन सलोन बर्मा आदि के बौद्धों से मिलेगा तब वह श्रात्मीयताका अनुभव करेगा | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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