Book Title: Dharm aur Vidya ka Tirth Vaishali
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 12
________________ कर सकती है । एवम्भूतनय उसी पारमार्थिक दृष्टिका सूचक है जो तथागतके 'तथा' शब्दमें या पिछले महायानके 'तथता' में निहित है। जैन परम्परामें भी 'तहत्ति' शब्द उसी युगसे आजतक प्रचलित है । जो इतना ही सूचित करता है कि सत्य जैसा है वैसा हम स्वीकार करते हैं। ब्राझण, बौद्ध, जैन आदि अनेक परम्पराओं के प्राप्य ग्रन्थोंसे तथा सुलभ सिक्के और खुदाईसे निकली हुई अन्यान्य सामग्रीसे जब हम प्राचीन श्राचारविचारोंका, संस्कृतिके विविध श्रङ्गोंका, भाषाके अङ्ग-प्रत्यङ्गोंका और शब्दके अर्थों के भिन्न-भिन्न स्तरोंका विचार करेंगे तब शायद हमको ऊपरकी तुलना भी काम दे सके। इस दृष्टिसे मैंने यहाँ संकेत कर दिया है। बाकी तो जब हम उपनिषदों, महाभारत-रामायण जैसे महाकाव्यों, पुराणों, पिटकों, श्रागमों और दार्शनिक साहित्यका तुलनात्मक बड़े पैमानेपर अध्ययन करेंगे तब अनेक रहस्य ऐसे ज्ञात होंगे जो सूचित करेंगे कि यह सब किसी एक वट बीजका विविध विस्तार मात्र है। अध्ययनका विस्तार पाश्चात्य देशोंमें प्राच्यविद्याके अध्ययन श्रादिका विकास हुआ है उसमें अविश्रान्त उद्योगके सिवाय वैज्ञानिक दृष्टि, जाति और पन्थभेदसे ऊपर उठकर सोचनेकी वृत्ति और सर्वाङ्गीण अवलोकन ये मुख्य कारण हैं। हमें इस मार्गको अपनाना होगा। हम बहुत थोड़े समयमें अमीष्ट विकास कर सकते हैं। इस दृष्टिसे . सोचता हूँ तब कहनेका मन होता है कि हमें उच्च विद्याके वर्तुलमें अवेस्ता श्रादि जरथुस्त परम्पराके साहियका समावेश करना होगा । इतना ही नहीं बल्कि इस्लामी साहित्यको भी समुचित स्थान देना होगा। जब हम इस देशमें राजकीय एवं सांस्कृतिक दृष्टिसे घुलमिल गए हैं या अविभाज्य रूपसे साथ रहते हैं तब हमें उसी भावसे सब विद्याभोंको समुचित स्थान देना होगा । बिहार या वैशाली-विदेहमें इस्लामी संस्कृतिका काफी स्थान है । और पटना, वैशाली श्रादि बिहारके स्थानोंकी खुदाई में ताता जैसे पारसी गृहस्थ मदद करते हैं यह भी हमें भूलना न चाहिए । भूदानमें सहयोग श्राचार्य बिनोवाजीकी मौजूदगीने सारे देशका ध्यान अभी बिहारकी ओर खींचा है। मालूम होता है कि वे पुराने और नये अहिंसाके सन्देशको लेकर बिहारमें वैशालीकी धर्मभावनाको मूर्त कर रहे हैं। बिहारके निवासी स्वभावसे सरल पाए गए हैं। भूदानयज्ञ यह तो अहिंसा भावनाका एक प्रतीक मात्र है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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