Book Title: Dharm aur Uske Dhyey ki Pariksha
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf

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Page 8
________________ धर्म और उसके ध्येयकी परीक्षा जो शुभनिष्ठा ही उत्पन्न करे । उलटा बहुत दफा तो ऐसा होता है कि अमुक बाह्य व्यवहारकी धर्मरूपमै प्रतिष्ठा जम जानेपर उसके आधारपर स्वार्थ-पोषणका हो काम अधिकांशमें साधा जाता है । इसी लिए हम देखते हैं कि शुभ. निष्ठासे स्थापित की हुई मंदिर-संस्थाकी व्यवस्था करनेवाली धार्मिक पेढ़ियाँ अन्तमें स्वार्थ और सत्ताके पोषणकी साधन हो जाती हैं । इतना ही नहीं, परन्तु कभी कभी धर्म-भीर दृष्टिसे पाई पाईका धार्मिक हिसाब रखनेवाले लोग भी धन के लोभमें फँसकर प्रसंग आनेपर अपना धार्मिक कर्ज चुकाना भूल जाते हैं । शुभ निष्ठासे स्वीकार किये हुए त्यागीके वेशकी प्रतिष्ठा जम जानेपर और त्यागी के आचरणका लोकाकर्षण जम जानेपर उसी वेश और बाह्य आचरणके आधारपर अशुभ वृत्तियोंके पोषणके उदाहरण भी कदम कदमपर मिलते रहते हैं । ऐसा नहीं कहा जा सकता कि कोई भी व्यक्ति बाह्य नियमसे लाभ नहीं उठाता किन्तु बाह्य नियम लाभप्रद होता ही है, यह भी एकान्त सत्य नहीं है । इस लिए जिस तरह एकान्त-रूपमें शुद्ध-निष्ठाको, बाह्यः व्यवहारका कारण नहीं माना जा सकता, उसी तरह उसको एकान्त रूपमें बाह्य व्यवहारका कार्य भी नहीं मान सकते । अतः कारण की दृष्टिसे या फलकी दृष्टिसे किसी भी व्यवहारको एक ही व्यक्ति या समष्टिके वास्ते ऐकान्तिक धर्म होनेका विधान नहीं किया जा सकता । यही कारण है कि जैन शास्त्रोंमें और दूसरे शास्त्रों में भी, तात्त्विक धर्मको सबके लिए और सदाके वास्ते एकरूप मानते हुए भी व्यावहारिक धर्मको इस तरह नहीं माना गया। फिर भी यह प्रश्न होता है कि अगर व्यावहारिक आचार ऐकान्तिक धर्मके रूपमै संभव नहीं है तो जब उन आचारोंका कोई विरोध करता है और उसके स्थानपर दूसरे निपम और दूसरे आचार स्थापित करना चाहता है, तो पुराने आचारोंका अनुसरण करनेवालों को क्यों बुरा लगता है ? और क्या उनकी भावनाको ठेस लगाना सुधारवादियोंके लिए इष्ट है ? जवाब स्पष्ट है। व्यावहारिक क्रियाकाण्डोंको भ्रमपूर्वक तात्विक धर्म मान लेनेवालोंका वर्ग हमेशा बड़ा होता है । वे लोग इन बाह्य क्रियाकाण्डों के ऊपर होनेवाले आघातोंको भी तात्त्विक धर्मपर आघात मानने की भूल किया करते हैं और इस भूलसे ही उनका दिल कष्ट पाता है। सुधारवादियोंका यह कर्तव्य है कि वे स्वयं जो समझते हो उसको स्पष्ट रूपसे रूढ़िवादियों के सामने रखें । भ्रम दूर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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