Book Title: Dhammapada 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 12
________________ ष धर्मः सनातनः मनुष्य की आंतरिक क्रांति के अग्रदूत ओशो 'धम्मपद' के अद्वितीय व्याख्याता हैं । 'एस धम्मो सनंतनो' में केवल व्याख्या ही नहीं है, ओशो की दिव्य मनीषा, गहन बोध और सहजानुभूति का उन्मेष भी है। सावत्थी में पंचसत भिक्खु को दिए गए उपदेश में निहित इस प्रश्न -' को धम्मपदं सुदेसितं कुसलो पुप्फमिव पचेस्सति' - का उत्तर ओशो की 'एस धम्मो सनंतनो' शीर्षक इस वार्त्ता-माला के रूप में हमारे सामने उपस्थित हो गया है। सचमुच, ओशो 'धम्मपद' के कुशल शैक्ष हैं, जिन्होंने उपदिष्ट धर्म के पदों का पुष्प की भांति चयन किया है- 'सेखो धम्मपदं सुदेसितं कुसलो पुप्फमिव पचेस्सति । 1 ए इसमें संदेह नहीं कि ओशो अंतर्जगत की क्रांति के सूत्रधार हैं । इस दुनिया में कई प्रकार की क्रांतियां आईं— जैव क्रांति, सामाजिक क्रांति, राजनीतिक क्रांति, कला - जगत की क्रांति इत्यादि । यह भी सच है कि ये क्रांतियां अपना-अपना प्रभाव मानव-समाज पर छोड़ गई हैं। किंतु, आज के विश्व को - आज के मनुष्य को एक चिति - क्रांति चाहिए—मनुष्य के आंतर्जगत (इनर वेल्ट) को संवारने और उसे उन्नत शैक्षो धर्मपदं सुदेशितं कुशलः पुष्पमिव प्रचेष्यति ।' 1 — धम्मपद, गाथा संख्या 45, पुप्फवग्गो चतुत्थो ।

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