Book Title: Dhammapada 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ बनाने के लिए। कारण, हमारे 'विचार' ही 'चरित्र' में बदलते हैं और 'विचार' का जन्म 'चिति' की अंतर्धारा में ही होता है। इस चिति-क्रांति की एक समृद्ध, किंतु, विरल परंपरा रही है। कृष्ण, महावीर और बुद्ध भी, एक मानी में, चिति-क्रांति के ही मूर्तिमान प्रतीक थे। जीसस, झेन कवि बासो, अरविंद और ओशो-ये सभी चैतन्य के छोटे-बड़े शिखर हैं; शील, बोधि और प्रज्ञा के हेम-शिखर हैं। ओशो ने बुद्ध को बहुत गहराई में समझा है और बुद्ध के विचारों की बड़ी प्रशंसा की है। बुद्ध तो कई हुए–विपस्सी, सिखी, वेस्सभू, ककुसंध (ककुत्संध), कोणा-गमन, कस्सप, गौतम इत्यादि। इन बुद्धों के पूर्व भी कई बुद्ध हुए-दीपंकर, तिस्स, फुस्स, सिद्धत्थ...। 'अनागत वंश' नामक पालि-ग्रंथ के अनुसार अब भी कई बुद्ध आने वाले हैं। किंतु, इन ‘पच्चेक बुद्धों' और 'सम्मास' बुद्धों के बीच गौतम बुद्ध अनन्वय हैं। 'मार' को जीतने वाला बुद्ध! बौद्ध 'मार' हो, आर्ष 'मदन' हो, यहूदी 'दियाबल' हो या ख्रीस्तीय 'शैतान' हो—सभी धर्म के और बोधि के अपकारक हैं। ऐसे मार को जीता गौतम बुद्ध ने। इसलिए कि बुद्ध वैद्य थे, शास्ता थे, गुरु थे और अप्रमाद योगी थे। वे ध्यानी ही नहीं, ज्ञानी भी थे। 'महाबोधि की संध्या' शीर्षक कविता में मैंने काल-कला-जयी बुद्ध को इन दोनों रूपों में याद किया है ज्ञानी, ध्यानी हे प्रबुद्ध! यह अदभुत है सामर्थ्य कि इक संग काल-कला-दोनों ही नतशिर तेरी महिमा के चरणों पर। ओशो ने सही कहा है कि 'बुद्ध विराट वृक्ष हैं। सारी मनुष्य जाति में बुद्ध ने जितनी संभावनाओं को जन्म दिया, किसी दूसरे आदमी ने नहीं दिया।...सारे जगत में...जो विचार कहीं भी जन्मा है, वह विचार बुद्ध में जन्मा है।' मैंने जब प्रत्येक युग-संदर्भ के लिए बुद्ध को प्रासंगिक मानते हुए बुद्ध को मार्क्स और माओ का दुर्लभ पूर्वपुरुष कहा था, तब मेरा यह कथन 'गगनांचल' के तत्कालीन संपादक श्री भवानी प्रसाद मिश्र जी (अब स्वर्गीय) को थोड़ा अवांतर प्रतीत हुआ था। किंतु, बाद में जब उन्हें मेरा अभीष्ट स्पष्ट हुआ, तब उन्होंने बुद्ध को संबोधित मेरी इन पंक्तियों की सराहना की युग-संदर्भो से अब भी तुम जुड़े हुए हो ओ प्रयोगवादी! जनवाणी के उन्नायक! तुम आख्याता नहीं सिर्फ थे

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 266