Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 04
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ धम्मिन सोमवृतिः ससंत्रमं // 27 // मधुमत्तपिकीरावा / सावादीदथ तं द्विजं // तवास्ति स्वागतं भ७।। नई च प्रेयसो मम // 55 // मत्प्रियस्य वयस्योऽसि / तस्य शुधि निवेदय // यत्किंचित्प्रेषित लेखा-दिकं तेन तदर्पय // 60 // हिजराजस्ततः स्माह / हिजराजानां किरन् // द्विजराजप्रति. 555 स्पर्षि-वदने स्वागतं मम // 61 // दयितस्तव कल्याणि / कल्यः कल्याणनाजनं // नपाय॑ ध. नमागंता / कालेन कियतापि सः // 6 // तेणीने धीमे पगले पावती जोश्ने ते सोमवृति ब्राह्मण बिगर्नु गेमीने संत्रमसहित उभो थयो. // 50 // वसंत ऋतुथी जन्मत्त थयेली कोयलसरखा कंठवाळी ते शीलवती ते ब्राह्मणने कहेवा लागी के हे ना! तमो कुशले आव्या गे? अने त्यां मारा स्वामी तो कुशल ? // // तमो मारा स्वामिना मित्र गे, माटे तेना समाचार कहो? अने तेणे जो कागलपत्रादिक कई प्राप्यु होय तो आपो? // 60 // त्यारे ते ब्राह्मण चंद्रसरखी कांतिने विस्तारतोयको बोल्यो के हे | चंद्रना प्रतिस्पर्धीमुखवाळी! हुं यहीं कुशलक्षेमे पाव्यो बु. // 61 // वळी हे कल्याणि! मनोहर | बने कल्याणना स्थानसरखा ते तारा स्वामी धन उपार्जन करीने केटलेक काळे यहीं श्रावशे.॥६॥ P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 204