Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 04
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धम्मि- चे सुजग त्वया // तन्नाम कस्य नानीष्टं / योवनद्रोः फलं ह्यदः // 6 // प्रियस्य प्रियमित्रस्य / / किमु नेदोऽस्ति कश्चन // मानितोऽसि प्रियेण त्व-मतो मान्यो ममापि हि // 7 // यत्प्रतीपं मया किंचि-दूचे तन्मास्म खिद्यथाः // यनितमपि प्रायो / निषिध्यंत्येकदा स्त्रियः / / 7 // परं सौम्य जनापाता–दत्र मे शंकते मनः॥ यास्तदादिमे यामे / यामिन्या धाम मामकं / / ७ए / काममूढेन तहाचि / तेन विश्वासमीयुषा // विसृष्टा ववले साथ / पादैः सत्वरपातिन्निः // 50 // शील जो.जतुं होय, तो पजी मारे ते बनेनी जरुर नथी. // 5 // एम निश्चय करीने ते बोली के हे सुनग! जे तें कहुं ते कोने वहाबुन लागे? केमके यौवनरूपी वृदनुं तेज फल बे. // // 6 // शुं स्वामी भने स्वामीना मित्रवच्चे कई तफावत ? मारा. स्वामिने तुं माननीक डे, मा. टे मारे पण तुं माननीकज . // 7 // वळी हुँ जे तारी सामु बोली बु तेथी तारे खेद करवो नहि, केमके प्रायें करीने स्त्रीन यावी मनगमती वातनो पण एक वखत निषेध करे . // 7 // परंतु हे सौम्य ! यही कोश् माणस भावी चडे माटे मारुं मन शंका पामे , माटे रात्रिने पहे. ले पहोरे तुं मारे घेर वावजे. // ए // कामथी मूढ बनेला ते ब्राह्मणे पण तेणीना वचनपर / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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