Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 04
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धम्मि- दध्यौ च तावत्तरणि-वित्यस्ताचलं प्रति // तस्मिन्नस्तमिते विप्रो / निर्विवाद समेष्यति // 1 // | | चिरत्नं शीलरत्नं मे / संरक्षिष्यति कस्तदा // यात्मनैवात्मरदायै / यतितव्यं ततो मया / / 72 // निवासमेनसामेन-मथ शिदयितुं विजं // तलारदस्य दुष्टानां / शासितुः सागमद् गृहं // 53 // 56 तस्याः कर्मवशात्सोऽपि / तदानीमेककोऽनवत् // वीक्ष्य तामागतामेव / विव्यथे मन्मथेषुभिः // | // ए४ // सा तलारदमाचख्यौ / प्रनावाद्भवतः प्रनो // चौरा श्व दिनेशस्य / न स्युरुवृंखलाः खविश्वास राखीने तेणीने जवानी रजा थापवाथी ते पण उतावळे पगले त्यांथी पाली फरी, // 10 // तथा विचारवा लागी के सूर्य तो अस्ताचलतरफ दोमी रह्यो बे, अने ते अस्त थयावाद ब्राह्मण तो खरेखर श्रावशेज. // ए१ // श्रने ते वखते घणा समयथी सांचवी राखेला मारा शीलरत्ननी कोण रदा करशे? माटे हवे तो मारे पोतानेज मारा यात्माना रक्षणमाटे प्रयत्न करवानों ने. // ए॥ पनी पापोना निवासस्थानसरखा ते ब्राह्मणने शिदाए पहोंचामवामाटे दुष्टोने शिदा क रनार कोटवालने घेर ते ग. // 23 // ते समये तेणीना कर्मवशे ते पण एकलोज हतो, अ. | ने तेथी तेणीने जोतावेंतज ते कामबाणोथी वांधावा लाग्यो. // ए४ // पनी तेणीए कोटवालने JUN GIM Aradhak Trust

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