Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 02
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 8
________________ धम्मि- कपोल्पालिमालीना / यस्य भुंगाः सहस्रशः // रेजिरेऽजस्र संवाहि-दानांगोबुबुदा 2 ॥श्णी | निशांते जाग्रता येनो-दस्तो हस्तो वनेचरैः // दृष्टो नगस्तरोस्तारा-पुष्पाण्याप्तुमिवोत्तिः // 30 // कुंजीतन्यस्य यो मुक्ता-धनं कृपणवहन् / / जाग्याधिकस्य कस्यापि / कृते वाहिकनां गतः // 31 // 100 | किमयं पादपः फुल्लः / किं वा सौध वनश्रियः // यं स्थानस्य निरीदयेति / दाणं मूढाः खगा अपि | // 35 / / सोऽन्यदाँतर्नदं कुंजा-चिखेलिषुरहर्मुखे // लीलालसातिः सौधा-दिव श्रीमान विनिर्य | मूहर्नु बीछान करी सुखे रहेनारो हाथी वसतो हतो. // 20 / / तेना गंमस्थलपर चोंटेला हजारो गमे जमरा हमेशां करनारा मदरूपी जलना जाणे परपोटा होय नहि तेम शोजता हता. / / // 27 // परोढीये जागेला एवा ते दाथीए पोतानी ऊँची करेली सुंढ जाणे आकाशरूपी वृक्ष. ना तारारूपी पुष्पोने लेवामाटे धारण करी होय नहि तेम शोजती हती. // 30 // वळी ते कृ. पणनीपेठे कुंगस्थलनी अंदर मोतीरूपी धनने धारण करतोथको कोश्क भाग्यवानना वाहनपणाने प्राप्त थयो हतो. // 31 // तेंने को जगोए नन्नेलो जोश्ने शुं श्रा को वृक्ष प्रफुल्लित थयु ने! अथवा था. वनलमीनो महेल ! एम विचारी विद्याधरो (पदिजे) पण मूढ थर जता P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhalatest

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