Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 02
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 3
________________ वाम्म- / यथा वित्तमदत्त सः॥ 6 // सोमदेवस्तदालोक्य / व्यमृशत्कृशधीहदि // अहो एषां कला की. | दृग् / अहो लोकः कलाप्रियः // 7 // कापि किंचिन्न लगते / याचमानोऽपि मे पिता // याञ्चां विना ह्यमी पापु-रापत्तापहरं धनं // 7 // धिम् ब्राह्मण्यं शुक्लवृत्त्या। कर्णपंचकपूरकं / विद्यास्थाना 175 | न्यपि वृथा / कंठशोषकराणि धिक् // ए // साम्यमेति श्रिया हीनो / नरो निर्वाणवहिना // यथा गाममां श्राव्यु. // 5 // ते नटोए पोतानी कळाथी त्यांना लोकोने एवा तो खुशी कर्या के जेथी तेजए तेजने पोतानीमेळेज श्वाथी पण अधिक धन थाप्यु. // 6 // ते जोश्ने तुबबुधि सो. मदेव मनमां विचारवा लाग्यो के, अहो! था नटोनी केवी कला ! तथा लोको पण कलाने चाहनारा . // 7 // अने मारो बाप तो जीखी जीखीने थाक्यो, तो पण तेने क्यांय कई मळ. तं नथी, अने या नटोने तो माग्याविनाज दारिद्यरूपी तापने हरनारुं धन मळी गयुं ! // 7 // माटे या ब्राह्मणपणानेज धिक्कार , के जेमां नीख मागीने उदरपूरणा करखी पडे ने, तेमज वि. द्याशाळा पण फोकट कंठशोष करनारी बे, माटे तेने पण धिक्कार जे. // // निर्धन माणस | गरी गयेला अमिसरखो एटले राखना मेळ्मां ने, माटे गमे तेम करीने पण धन मेळववं, तेमा. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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