Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 01
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धम्मि- क् // जनी सार्वजनीनास्य / सुनद्रा नामतोऽजनि // 35 // प्रीतिप्रेरणयामस्त / श्रेष्टी तां जिवि. तेश्वरीं // सा पुनर्विनयादासी-दासींमन्या प्रियंप्रति // 26 // कालो जुयान मियःप्रेम-गुणनिः स्यूतयोस्तयोः // गृहमंडनयोर्दड-वैजयंत्योरिवागमत् / / 37 // नयश्रीनिशि निदाणा-ऽन्यदानिमिष नायकं // ददर्श दर्शनानंदं / खमे श्वेतेगवाहनं // 30 // तन्वि ते तनयो नाव। श्रीमान धीमां. श्च निश्चितं // स्वप्न एवेति साश्रीषी-त्तस्यामृतकिरं गिरं / 35 // स्वप्ने निवेदिते पत्यु-स्तया विरिमां प्रीतियुक्त जक्तिवाळी, सहचनरूपी अमृतनी (दूधनी) कामधेनु सरखी तथा सर्वलोकोने माननिक एवी सुनद्रा नामनी ते शेग्नी पत्नी हती. // 35 // ते सुनद्राने प्रीतिनी प्रेरणाथी शे पोताना जीवननी मालिक समान मानतो हतो, अने तेणी पण विनयथी (पोताना ) ते प. ति तरफ दासीपणे वर्तती // 36 // परस्पर प्रेमरूपी दोराथी सीवायेला दंड अने पताकानी पेठे घरना मंडनरूप एवा ते बन्नेनो ( दंपतीनो) घणो काल व्यतीत थयो / / 3 / / एक दिवसे न्यायः युक्त लक्ष्मीवाळी (ते सुजद्राए.) रात्रिने समये सुतां थकां स्वप्नमां श्वेतहस्तिना वाहनवाळा तथा या | नंदी दर्शनवान इंद्रने जोयो, 30 घने हे कोमलांगी! तने खरेखर लक्ष्मीवान बने बुद्धिवान.प. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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