Book Title: Devnagari Lipi aur Uska Vaigyanik Mahattva
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf

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Page 4
________________ न पवित्र मंत्रों के गान/गीत-संगीत द्वारा की जा सकती है : क्या दंतकथा| सुखरूप पिरामिड के चमत्कारिक प्रभाव जैसा असर इन पवित्र सुर-स्वर द्वारा पैदा किया जा सकता है ?" । यहाँ ध्यान में रखा जाय कि भारतीय भाषाओं की लिपि व ध्वनि/उच्चारण के बारे में ये प्रश्न किसी भारतीय या फ़ालतू व्यक्ति के नहीं हैं किन्तु ई. स. 11957 से इसी क्षेत्र में अनुसंधान करने वाले स्विस डॉक्टर स्व. हेन्स जेनी T RANSLMAANYADAWELFARNAGARRERALDAN H प्रसंग के अनुसार दूसरी एक बात खास तौर से ध्यान में रखने योग्य है। कि वि. सं. 1199 के दौरान गुजरात की अस्मिता के पुरोधा कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्यजी ने श्री सिद्धहेमशब्दानुशासन नामक एक व्याकरण की रचना की है । इस व्याकरण में प्रथम सात अध्याय/विभाग में संस्कृत भाषा का व्याकरण बताया गया है किन्तु इसके आठवें अध्याय में प्राकृत आदि छः भाषाओं का व्याकरण भी बताया गया है । वे इस प्रकार हैं1. प्राकृत, 2. अर्धमागधी, 3. शौरसेनी, 4. पैशाची, 5. चूलिका पैशाची, 16. अपभ्रंश ।'' इसमें पैशाची भाषा के लिये कहा जाता है कि प्राचीन काल से इस भाषा में प्रेतयोनि के जीव व्यवहार करते हैं । अतः प्रेतयोनि के जीव को वश करने के मंत्र इसी भाषा में होते हैं । जिनके अर्थ उसी मंत्र के साधकों को भी मालुम नहीं होता है । प्राचीन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन परंपरा के साहित्य में नवस्मरण नाम से प्रसिद्ध स्तोत्र संगीत-चिकित्सा व मंत्र-चिकित्सा के अमूल्य साधन हैं । हाल ही में इन्टरनेट से प्राप्त जानकारी के अनुसार फबिएन ममन (Fabien |Maman) नामक संशोधक ने बताया है कि संगीत के सुर में C, D, E, IF, G, A, B, C व D' सुर के क्रम से प्रायः 14 -14 मिनिट तक सतत संगीतमय उच्चारण करने पर कैन्सर की कोशिकाओं का नाश होता है ऐसा प्रायोगिक परिणाम में देखा गया है । इतना ही नहीं सूक्ष्मदर्शकयंत्र (Microscope) में रखे गये कैन्सर की कोशिका की स्लाइड में कैन्सर की कोशिकाओं का नाश प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है । और उसके फोटोग्राफ्स भी लिये गये हैं । वे इनसे संबंधित वेबसाईट में रखे गये हैं ।" ! पिछले कुछ वर्षों में हमारे पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री विजयसूर्योदयसूरिजी महाराज के अनुभव में ऊपर बताये हुए नवस्मरण स्तोत्र के अन्तर्गत तीसरे 97 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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