Book Title: Devnagari Lipi aur Uska Vaigyanik Mahattva Author(s): Nandighoshvijay Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf View full book textPage 6
________________ | केवल एक ही प्रकार के अक्षरों या शब्दों की ध्वनि होती है । अतः वह ज्यादा घन तीव्र बनता है, परिणामतः संगीत के साधन के ध्वनि से उसका ज्यादा व स्पष्ट असर होता है । सामान्यतः आधुनिक औषधविज्ञान में जिस कैन्सर के व्याधि को असाध्य माना गया है, वह संगीत के सुरों द्वारा व मंत्र चिकित्सा द्वारा दूर हो सकता है ऐसा पश्चिम में किये गये अनुसंधान से पता चलता है । मंत्रशास्त्र के वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये हाल ही में अमरिका में बनाया गया टोनोस्कॉप नामक यंत्र बहुत ही उपयोगी है । इस यंत्र की महत्ता बताते हुए उसके अनुसंधानकार हेन्स जेनी कहते हैं कि दूसरे कोई भी प्रकार के | इलेक्ट्रोनिक साधन की बिना सहायता ही टोनोस्कॉप नामक यह यंत्र मनुष्य की आवाज का दृश्य में रूपांतर करता है । और इसी साधन की सहायता से भाषागत कोई भी स्वर या व्यंजन के तथा संगीत के विभिन्न सुरों को सीधे ही भौतिक आकृति में दृश्यमान बनाकर आगे का अनुसंधान करने की संभावनाओं का निर्माण हुआ है । 15 हमारी भारतीय प्राचीन साहित्य वैज्ञानिक रहस्य अनुसंधान संस्था (Research Institute of Scientific Secrets from Indian | Oriental Scriptures), अहमदाबाद हाल ही में कार्यान्वित हुई है । वह निकट के भविष्य में इसी यंत्र के द्वारा स्व. हेन्स जेनी द्वारा उपस्थित किये गये प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने के लिये प्रयत्न करेगी तथा यंत्र, मंत्र, तंत्र के बारे में विशिष्ट प्रायोगिक अनुसंधान कार्य शुरु करेगी । संक्षेप में, संस्कृत भाषा एक ऐसी विशिष्ट भाषा है कि जो पूर्णतः वैज्ञानिक है । इतना ही नहीं, किन्तु प्राचीन काल के ऋषि मुनिओं को इसके बारे में जितना ज्ञान था उसका अंश मात्र भी वर्तमान लोगों के पास नहीं है । उस ज्ञान को प्राप्त करने हेतु इस संस्था द्वारा अनुसंधान किया जायेगा | संदर्भ : 1. जैनदर्शननां वैज्ञानिक रहस्यो ले मुनि श्री नंदीघोषविजयजी (प्र. भारतीय प्राचीन साहित्य वैज्ञानिक रहस्य अनुसंधान संस्था जनवरी 2000) पृ. 91 2. द्रष्टव्य : पाणिनीय अष्टाध्यायी (संस्कृत व्याकरण) 3. सिद्धहेमशब्दानुशासन सूत्र औदन्ताः स्वराः । 114 अं अः अनुस्वारविसग । 1-1-9 Jain Education International - 99 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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