Book Title: Devnagari Lipi aur Uska Vaigyanik Mahattva Author(s): Nandighoshvijay Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf View full book textPage 2
________________ (संस्कृत व्याकरण) के कर्ता कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्यजी ने दीर्घ ऋ और दीर्घ ल दोनों का निर्देश किया है । इनके संबंधित नियम भी बताये हैं। देवनागरी लिपि के व्यंजन की व्यवस्था प्राचीन काल से इस प्रकार चली आती है । क, ख, ग, घ, ङ • कवर्ग - कंठ्य, च, छ, ज, झ, ञ-चवर्ग- तालव्य, 1 ट, ठ, ड, ढ, ण - टवर्ग • मूर्धन्य त, थ, द, ध, न · तवर्ग • दंत्य, प, फ, ब, भ, म - पवर्ग - ओष्ठ्य , य, व, र, ल • उष्माक्षर श - तालव्य, ष - मूर्धन्य, स · दंत्य, ह - महाप्राण, क्ष = क् + ष, ज्ञ = ज् + ञ व - दंत्यौष्ट्य क वर्ग के सभी व्यंजनों का उत्पत्ति स्थान कंठ होने से उन्हें कंटस्थ कहा जाता है । जबकि चवर्ग के व्यंजन का उच्चारण करते समय जिह्वा व तालु का संयोग होता है अतः उन्हें तालव्य अर्थात् तासु द्वारा निष्पन्न कहा जाता है । टवर्ग के व्यंजन की असर मूर्धन् अर्थात् मस्तिष्क तक पहुँचती है या उसका उत्पत्ति स्थान मस्तिष्क है, अतः उसे मूर्धन्य कहा जाता है । तो तवर्ग के व्यंजन का उच्चारण करते समय जीभ ऊपर व नीचे दोनों ओर दांत को स्पर्श करती है अतः उन्हें दन्त्य कहा जाता है । पवर्ग के व्यंजन के उच्चारण करते वख्त दोनों ओष्ठ इक्कट्टे होते हैं अतः उन्हें ओष्ठ्य व्यंजन कहा जाता है। कहा जाता है कि साढे तीन सौ वर्ष पूर्व महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज ने काशी के किसी विद्वान के साथ पवर्ग के एक भी| व्यंजन और व के उपयोग किये बिना बहुत लम्बे समय तक शास्त्रार्थ किया। था | और ओष्ठ्य व्यंजन का उपयोग नहीं हुआ है, उसका निर्णय करने के लिये ऊपर के एक ओष्ठ को लाल रंग का हरताल लगा दिया था । यदि पवर्ग के व्यंजन का प्रयोग हो जाय तो ऊपर के ओष्ठ का रंग नीचेवाले ओष्ट को लग जाय किन्तु उपाध्यायजी महाराज ने ऐसी कड़ी शर्त का बराबर पालन किया। ऊपर बताया उसी प्रकार य, व, र, ल श, ष, स, ह के सभी निश्चित उच्चारण स्थान बताये हैं । ह को महाप्राण कहा है क्योंकि उसका उच्चारण नाभि व वक्षस्थल से होता है । देवनागरी लिपि के अन्त में क्ष और ज्ञ बताये हैं । किन्तु ये दो स्वतंत्र अक्षर नहीं हैं, किन्तु वे दो दो व्यंजन के संयोजन 95 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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