Book Title: Devnagari Lipi aur Uska Vaigyanik Mahattva
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf

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Page 3
________________ से निष्पन्न हैं । यहाँ इतना याद रखना कि आधुनिक विज्ञान ने हाल ही में ई. स. 1807 में ही ध्वनिशास्त्र ( acoustics) की शोध की है उससे हजारों साल पहले यही वर्णमाला व उसका विश्लेषण प्राचीन भारतीय साहित्य में चला आ रहा है । और संस्कृत व्याकरण के अध्येता उसका अध्ययन करते थे और आज भी कर रहे हैं। जब पश्चिम में उस समय किसी भी प्रकार के विज्ञान का जन्म भी नहीं हुआ था । ईसा की सत्रहवीं सदी में हुए अर्नस्ट च्लेन्डी (Ernst Chiandi ) नामक जर्मन विज्ञानी व निष्णात संगीतकार को ध्वनिशास्त्र का पिता माना गया है । ' देवनागरी लिपि जिसमें प्राचीन काल से संस्कृत भाषा द्वारा अपने विचार व भावनाएँ अभिव्यक्त की जाती थीं और उसके लिये वह महत्त्वपूर्ण माध्यम थी । इसी लिपि के स्वर व्यंजन के आकार भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । प्राचीन काल के दिव्यज्ञानवाले महापुरुषों ने इन्हीं स्वस्व्यंजन के आकार को अपने विशिष्ट ज्ञान द्वारा प्रत्यक्ष दर्शन / साक्षात्कार किया था । बाद में उन्हीं अक्षरों के आकार को लिपिबद्ध किया था । अर्थात् उच्चरित स्वर- व्यंजन के ध्वनि की आकृति दी गई । आज हजारों वर्ष बाद भी इन्हीं स्वर-व्यंजन के आकार लिपि में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ है । इतना ही नहीं ई. स. 1967 में स्विस डॉक्टर स्व. हेन्स जेनी नामक आर्टिस्ट व विज्ञानी संशोधक ने खास तौर से बताया कि जब भी हिब्रु व संस्कृत ( प्राकृत व अर्धमागधी) जैसी प्राचीन भाषा के स्वर-व्यंजन का उच्चारण किया जाता है तब उसके सामने स्थित रेत में उसी स्वर व्यंजन की आकृति हो जाती है । जबकि हमारी वर्तमान भाषाओं के उच्चारण के दौरान ऐसा परिणाम नहीं मिलता है । B इसके बारे में प्रश्न उपस्थित करते हुए हेन्स जेनी कहते हैं: यह कैसे संभव है ? क्या भारतीय व हिब्रु भाषा के निष्णातों को इस बात की समझ थी ? यदि ऐसी समझ हो तो यह महान आश्चर्य है । क्या पवित्र भाषाओं के बारे में उनका कोई विशिष्ट या निश्चित ख्याल/विचारधारा होगी ? और इन पवित्र भाषाओं के लक्षण क्या थे ? क्या इन भाषाओं में भौतिक पदार्थों में परिवर्तन करने का या उस पर असर पैदा करने का सामर्थ्य था ? या क्या इन भाषाओं के मंत्र की शक्ति द्वारा भौतिक पदार्थ उत्पन्न किये जा सकते हैं? या क्या किसी भी व्यक्ति के मानसिक व शारीरिक रोगों की चिकित्सा 96 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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