________________
कामताप्रसाद जैन, डॉ. एच. डी. साँकलिया, डॉ. उमाकान्त प्रेमानन्द शाह, श्री मधुसूदन ढाकी, डॉ. रामजी उपाध्याय, प्रो. श्रीधर मिश्र, डॉ. वीरेन्द्रकुमार जैन, प्रो. जयकुमार जलज, पं. परमानन्द शास्त्री, पं. परमेष्ठीदास न्यायतीर्थ, श्री नीरज जैन, प्रो. एच. सी. पाराशर, मा. राजधर जैन, प्रो. ब्रह्मदत्त तिवारी, प्रो. प्रेमचन्द्र जैन, श्रीमती सरोज साधेलीय, श्री विशनचन्द्र ओवरसियर, मास्टर हरिश्चन्द्र जैन आदि सज्जनों का सहयोग भी स्मरणीय है । मैं इन सभी का आभारी हूँ ।
देवगढ़ मैनेजिंग दिगम्बर जैन कमेटी के तत्कालीन मन्त्री श्री शिखरचन्द्र सिंघई ने अनेक प्रकार की सुविधाएँ और सूचनाएँ प्रदान कीं तथा विदिशा के फोटोग्राफर श्री हरिश्चन्द्र जैन ने मेरी आवश्यकता के अनुसार अनेक बार देवगढ़ पहुँचकर चित्र तैयार किये। सागर विश्वविद्यालय के पुरातत्त्व विभाग के आर्टिस्ट और फोटोग्राफरों का सहयोग भी उल्लेखनीय है ।
इटारसी महाविद्यालय के मेरे प्रिय छात्र श्री सदनलाल यादव का पाण्डुलिपि तैयार करने में सहयोग और टंकित प्रतियों के संशोधन में श्री सन्मतकुमार जैन (शोधछात्र, हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी) आदि का सहयोग भी सधन्यवाद स्वीकार करता हूँ ।
प्रस्तुत प्रबन्ध की सामग्री संकलित करने में मैंने सागर विश्वविद्यालय, गणेश जैन महाविद्यालय, सागर, गौराबाई जैन मन्दिर, सागर, पार्श्वनाथ जैन मन्दिर, इटारसी, जैन मन्दिर, रीठी, महात्मा गाँधी स्मारक महाविद्यालय, इटारसी, शासकीय महाविद्यालय, सीहोर, नेशनल लायब्रेरी, कलकत्ता तथा इण्डिया ऑफ़िस लायब्रेरी, लन्दन आदि के पुस्तकालयों का प्रत्यक्ष-परोक्ष उपयोग किया है । अतः उक्त सभी पुस्तकालयों के अध्यक्षों के प्रति विनम्र भाव व्यक्त करता हूँ ।
महात्मा गाँधी स्मारक महाविद्यालय इटारसी के भूतपूर्व प्राचार्यों, श्री शिवबहारी त्रिवेदी एवं डॉ. रामखिलावन तिवारी ने इस कठिन कार्य में मुझे जो सहयोग और बहुविध सुविधाएँ प्रदान कीं, उनका विस्मरण करना कृतघ्नता होगी । इसी सन्दर्भ में शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सीहोर के प्राचार्य डॉ. के. एल. श्रीवास्तव (तत्कालीन अधिष्ठाता, कला संकाय, विक्रम विश्वविद्यालय) की सहज आत्मीयता भी उल्लेखनीय है ।
जून 1969 ई. में सागर (म. प्र. ) में आयोजित 'स्नातक - शिविर' में शोध-प्रबन्ध के प्रस्तुतीकरण के लिए एक विशेष दृष्टि प्राप्त हुई, जिससे प्रबन्ध को इस रूप में प्रस्तुत करने में बड़ा बल मिला ।
सागर विश्वविद्यालय द्वारा 1970 ई. में पी-एच. डी. उपाधि के लिए स्वीकृत इस प्रबन्ध के प्रकाशनार्थ भेजे जा चुकने के बाद देवगढ़ की जिन - प्रतिमाओं पर जर्मन विद्वान् डॉ. क्लॉज़ ब्रून की एक सचित्र पुस्तक प्रकाशित हुई है। इसकी उपयोगिता अपनी है। इससे प्रस्तुत प्रबन्ध की तुलना नहीं की जा सकती, तथापि उसे सूक्ष्मता
Jain Education International
सात
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org