Book Title: Darshan Vishe Vicharna Author(s): Trailokyamandanvijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ १४८ पण उपयोग अन्तर्मुहूर्तथी ओछा समयमां थाय पण नहीं अने अन्तर्मुहूर्तथी वधु टके पण नहीं. दर्शनोपयोगना अन्तर्मुहूर्त करतां ज्ञानोपयोगनुं अन्तर्मुहूर्त मोटुं होय छे, कारण के सामान्यना ग्रहण करतां विशेषनुं ग्रहण वधु समय मांगे छे. १ जो के आ बधा नियम छद्मस्थ जीव माटे ज छे. केवलज्ञानी भगवन्तने ते सदाकाल ओक समय केवलज्ञान अने बीजा समये केवलदर्शन ओवी धारा प्रवर्ते छे. ज्ञानना तमाम भेदो साकार अने ज्ञानावारक कर्मना क्षयोपशमथी जन्य होय छे. तथा तमाम दर्शनो निराकार अने दर्शनावारक कर्मना क्षयोपशम साथे निस्बत धरावनारा होय छे. ओक ओक ज्ञानना असंख्य भेदो पडे छे, छतांय स्थूल-भूमिका पांच ज्ञानना अनुक्रमे २८, १४, ६, २ अने १ ओम कुल ५१ भेद समजाववामां आवे छे. तेमांथी मतिज्ञानना उत्पत्तिक्रमने अनुलक्षीने रचाता २८ भेद प्रस्तुत चर्चामां उपयोगी होवाथी ते समजवा जरूरी छे. श्रावणमतिज्ञानना ५ भेद छे : १. व्यंजनावग्रह श्रोत्रनो शब्दात्मक पुद्गलो साथै संयोग, २. अर्थावग्रह ‘कंइक छे' ओवी निराकार प्रतीति ३. ईहा - 'शुं हशे ?' तेनी विचारणा ४. अपाय - 'शब्द छे' ओवो निश्चय ५. धारणा निश्चयनी स्थिरता. आवा ज ५-५ भेद स्पार्शन, रसन, घ्राणज, चाक्षुष अने मानस मतिज्ञानना थाय छे. कुल ३०. तेमां चक्षु अने मनने विषयबोध माटे विषय साथेना संयोगनी अपेक्षा न होवाथी', अर्थावग्रहथी ज ते बे स्थळे प्रक्रिया आरम्भाती होवाथी, ३०मांथी चाक्षुषव्यंजनावग्रह अने मानसव्यंजनावग्रह ओ बे भेद न होय; ए रीते मतिज्ञानना २८ भेद थाय छे. अन्य ज्ञानोना भेदो विशेषावश्यकभाष्य, नन्दीसूत्र जेवा महाग्रन्थोमांथी जाणी शकाय . १. २. - अनुसन्धान-५६ - उपर दर्शावेली व्यापकपणे प्रचलित ज्ञान - दर्शननी व्यवस्था खूब ज व्यवस्थित, शास्त्राधारित अने सुदृढ छे, ते स्पष्ट देखाय छे. छतां पण तेमांनां केटलाक प्रतिपादन परत्वे केटलाक प्रश्नो अवश्य सर्जाई शके तेम छे. जेम के 44 'अनाकारोपयोगकालात् साकारोपयोगकालः सङ्ख्येयगुणः प्रतिपत्तव्यः, पर्यायपरिच्छेदकतया चिरकाललगनात्, छद्मस्थानां तथास्वाभाव्यात्" प्रज्ञापना- पद २८ टीका. चक्षु अने मन आकारणे ज 'अप्राप्यकारी' कहेवाय छे. - -Page Navigation
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