Book Title: Darshan Vishe Vicharna Author(s): Trailokyamandanvijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ ऑगस्ट २०११ दर्शन विशे विचारणा - १४३ 'दर्शन' शब्द त्रण अर्थमां व्यापकपणे प्रचलित छे: १ १. जोवुं २. अलौकिक वस्तुनो साक्षात्कार ३. निश्चित विचारसरणी (जेम के साङ्ख्यदर्शन). जैन परम्परामां आ उपरान्त बे विशिष्ट सन्दर्भे दर्शन - शब्द प्रयोजाय छे : १. तत्त्व परनी श्रद्धा (- सम्यक्त्व) २. निराकार - उपयोग ( - सामान्यग्रहण). अत्रे आमांथी दर्शनना ओक अर्थ निराकार- उपयोग विशे ज विचारवानो उपक्रम छे. ३ ३. ले. मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय जैन विद्याना अभ्यासीओमां ज्ञान - दर्शननी व्यवस्था अंगे अने तेमां पण खास करीने दर्शनना स्वरूप सम्बन्धे जे समजण आजे प्रवर्ते छे, ते आगमिक दर्शननी विभावनाथी घणी भिन्नता धरावे छे. आ भिन्नताने ली प्रचलित ज्ञान-दर्शननी व्यवस्था परत्वे आगमिक अने तार्किक –बन्ने दृष्टिओ घणी घणी समस्याओ सर्जाइ शके तेम छे. अत्रे आ समस्याओ अने मूळ दर्शननी विभावनामां रहेला तेमना उकेलो तरफ ध्यान दोरवानो उद्देश छे. ओक वात खास ध्यानमा राखवानी छे के दर्शन विशे ओक ज स्थाने सांगोपांग निरूपण प्राय: उपलब्ध नथी थतुं; फक्त ओना अंगेना पाठ जुदां जुदां शास्त्रोमां मळे छे. सामान्यतः अभ्यासीओ द्वारा आ पाठोनुं संकलन करीने दर्शन विशे समजवामां अने समजाववामां आवतुं होय छे. आ संकलनमां थयेली त्रुटिने लीधे जूना समयथी ज दर्शननी मूळ विभावना साथेनो सम्बन्ध छूटी - १. मूळ 'जोवुं, अवलोकन करवुं' अ अर्थमां प्रयोजातो शब्द कई रीते साक्षात्कार अने विचारसरणी सन्दर्भे प्रयोजातो थयो तेनी रसप्रद चर्चा माटे जुओ भारतीय-तत्त्वविद्या (- पं. सुखलालजी) - पृ. ९-१३ २. आ उपरान्त 'सम्यक्त्वनी विशुद्धि कारक शास्त्र' जेवा अर्थोमां पण औपचारिक रीते 'दर्शन' शब्द जैनपरम्परामां प्रयोजाय छे. जुओ अभिधानराजेन्द्रकोश- भाग-४ पृ. २४२५ 'दंसण' शब्द. प्रस्तुत विषय साथै सम्बन्धित घणी वातो आ पूर्वे ' मतिज्ञानना उत्पत्तिक्रमनी विचारणा' अ लेखमां आवी गइ होवाथी, ते वातो अत्रे पुनरावर्तित नथी करी. लेखनुं स्थानअनुसन्धान- ५४- पृ. १५-३८Page Navigation
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