Book Title: Darshan Vishe Vicharna Author(s): Trailokyamandanvijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 5
________________ ऑगस्ट २०११ धरावनार व्यक्तिनुं (-सम्यक्त्वी जीवनुं ) ज्ञान 'ज्ञान' कहेवाय छे अने तत्त्वश्रद्धा न धरावनार व्यक्तिनुं (-मिथ्यात्वी जीवनुं) ज्ञान 'अज्ञान' गणाय छे. १ ज्ञान प्रमाण छे अने अज्ञान अप्रमाण छे. १४७ श्रुतज्ञानशक्तिनो विषय छे वाक्यना अर्थथी जन्य बोध अने मनःपर्यवज्ञानशक्तिनो विषय छे मानसिक विचारो आथी आ बे ज्ञानशक्तिओ स्वभावथी ज विशेषग्राही ज छे, अने माटे तेमना निराकार उपयोग पण नथी होता. वळी, मन:पर्यवज्ञानशक्ति अने केवलज्ञानशक्ति तत्त्वश्रद्धा वगर प्राप्त ज नथी थती, माटे तेओनो साकार उपयोग कदी पण अज्ञानात्मक नथी होतो. आ उपरान्त, मतिज्ञानशक्तिनो निराकार उपयोग- सामान्यग्रहण जो चक्षु द्वारा थाय तो चक्षुर्दर्शन अने अन्य चार ज्ञानेन्द्रियो के मन द्वारा थाय तो अचक्षुर्दर्शन गणाय छे. आ समग्र व्यवस्थाने अनुलक्षीने पांच ज्ञानशक्तिना कुल बार उपयोग सर्जाय छे : मतिज्ञानशक्ति : १. मतिज्ञान २. मत्यज्ञान ३. चक्षुर्दर्शन ४. अचक्षुर्दर्शन श्रुतज्ञानशक्ति १. श्रुतज्ञान २. श्रुताज्ञान अवधिज्ञानशक्ति : १. अवधिज्ञान २. विभङ्गज्ञान' ३. अवधिदर्शन मन:पर्यवज्ञानशक्ति : १. मन:पर्यवज्ञान केवलज्ञानशक्ति : १. केवलज्ञान २. केवलदर्शन. सामान्यअंशनुं ग्रहण थया पछी ज विशेषअंशनुं ग्रहण थाय ते सर्वसम्मत छे. माटे दर्शन प्रवर्ते, पछी ज ज्ञान प्रवर्ते से नियम पण आपोआप रचाय छे. दर्शन अने ज्ञान बन्ने अन्तर्मुहूर्तकालीन होय छे, कारण के कोई १. मिथ्यात्वी जीवना ज्ञानने अज्ञान गणवानां अन्य कारणो माटे जुओ विशेषावश्यकभाष्य गाथा ११५ अने तेनी टीका. मिथ्यात्वी जीवनुं अवधिज्ञान 'विभङ्गज्ञान' कहेवाय छे. जैनकालगणना मुजब कालनो अन्तिम निर्विभाज्य भाग 'समय' गणाय छे. आवा ओछामां ओछा ९ समयथी मांडीने वधुमां वधु लगभग ४८ मिनिट जेटलो काल 'अन्तर्मुहूर्त' गणाय छे. मतलब के अन्तर्मुहूर्त अनेक प्रकारनुं होय छे. २. ३.Page Navigation
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