Book Title: Darshan Vishe Vicharna
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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ओगस्ट २०११
'जाणति'ना विषयभूत छे, तेनी साथे ज 'पासति'ने केम सांकळवामां नथी आवतुं ? अर्थात् 'मन:स्कन्धोने जाणे छे' ओम 'मनः स्कन्धोने जुभे छे' ओवो अर्थ केम नथी करवामां आवतो ? 'बाह्य अर्थ' नो उल्लेख करनारो कोई ज शब्द मूलसूत्रमां न होवा छतां 'पासति'ना व्याख्यान वखते अनुं ग्रहण कई रीते वाजबी गणाय ? वास्तवमां आवो अर्थ करवो उचित लागे छे : "मन:पर्यवज्ञानी मनपणे परिणत अनन्त स्कन्धोने सामान्यथी जुभे छे अने विशेषथी तद्गत वर्णादि भावोने जाणे छे. "
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१ मनः
वस्तुतः मनः पर्यवथी ग्राह्य, मनोवर्गणाना स्कन्धोमां रहेली विशिष्ट छापो छे के जे चोक्कस विचारने लीधे अमां अंकित थयेली होय छे. अवधिज्ञानी अवधिदर्शनना बळे मनः स्कन्धोने जोइ शके छे अने अवधिज्ञानना बळे तेने विशेषपणे जाणी पण शके छे. छतांय वस्तुना सर्व पर्यायोने अवधिज्ञान नथी पकडी शकतुं ओ तेनी मर्यादा छे अने आ मर्यादाने लीधे मनःस्कन्धगत से विशिष्टताओने पण अवधिज्ञान नथी पकडी शकतुं के जेनाथी से विशिष्टता जेने लीधे आवी छे ते विचारोने जाणी शकाय .. पर्यवज्ञान आ विशिष्टताओने जाणी शके छे अने ओना बळे अनुमान करीने बीजाना मनना विचारोने अने से विचारोना विषयभूत पदार्थोने जाणी शके छे. आ पदार्थोनुं ज्ञान थाय ओटले आ ज्ञानना आधारे तेमनो पण मानसिक साक्षात्कार करी शकाय छे. आ साक्षात्कार मनः पर्यवज्ञानना आलम्बने थयो होवाथी मनःपर्यवसाकारपश्यत्ता तरीके ओळखाय छे. सम्पूर्ण प्रक्रिया आम थशे : मनः स्कन्धोनुं सामान्यतः दर्शन ( अवधिदर्शन ) [ चोक्कस मनः स्कन्धोगत वैशिष्ट्यनुं ग्रहण ( मनः पर्यवज्ञान ) → वैशिष्ट्यना आधारे विचारो अने तेना विषयभूत पदार्थोनुं अनुमान अनुमित अर्थोनो मानसिक साक्षात्कार ( मन:पर्यवज्ञान-साकारपश्यत्ता).
आमां मनःपर्यवज्ञाननी पूर्वे अवधिदर्शन भेटले मानवुं पडे छे के छद्मस्थजीवमात्र माटे ज्ञानोपयोग पूर्वे दर्शनोपयोग अनिवार्य छे, मनः पर्यवज्ञानी
१. जो के निर्मलतम अवधिज्ञानथी आंशिक रीते मनःस्कन्धोगत विशिष्टताओ पण जाणी शकाय छे. जेम के अनुत्तरविमानवासी देवो केवली भगवन्तोना मनः परिणामने जाणी शकता होय छे.

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