Book Title: Danadiprakarana
Author(s): Suracharya, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 69
________________ श्रीमत्सूराचार्यविरचितम् - - - -[७५-१]- -रभ्य साधुभ्योऽप्यशनादिकम् । न दद्यात् पापिनोऽन्यापि दानमेनःप्रवर्तनम् ॥११८॥ कन्याफलं यथोद्दिश्य वापीकूपसरांसि - - - - - - - - - - - -हलादिकम् ॥११९॥ उत्सर्गेणापवादेन निश्चयाद्वयवहारतः । क्षेत्रपात्राद्यपेक्षं च सूत्रं योज्यं जिनागमे ।।१२०॥ न किञ्चि - - - - - - - - - - - - - । गुणदोषो तु सश्चिन्त्य कृत्याकृत्यव्यवस्थितिः ॥१२१॥ विधीयते गुणः शुद्धः ईषद्दोषो महागुणः । ------- - - - - - ---- ॥१२२॥ - - - -[७५-२] ममागमज्ञपुरुषानापृच्छय धर्मार्थिनो दृष्ट्वाशिष्टजनप्रवृत्तिमधुना श्रुत्वागमे- - - । - - - - -- - - - - - - ------- - - - -मिदं वि वार्य निपुणैः पुण्यार्थिभिः सज्जनैः ॥१२३।। दानाभावे भवति गृहिणां मुख्यधर्मप्रहाणं साधूनां च स्थितिविरहतो - - - - - ।। ---दा जिनपतिमतस्यावदातस्य गुर्वी सराचार्यैरिति वितरणं साधितं साधु युक्त्या ॥१२४॥ ॥ सप्तमोऽवसरोऽवसितः। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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