Book Title: Chaturvinshati Jin Stavanam
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ 54 अनुसंधान-२५ से लेकर ३१ अक्षर तक २४ छन्दों का प्रयोग हुआ है। प्रत्येक पद्य में प्रत्येक तीर्थंकर का नाम भी अंकित है और छन्द का नाम भी अंकित है, यह कृति की प्रमुख विशेषता है । २५वां प्रशस्ति पद्य स्रग्धरा छन्द में निर्मित है । भक्तिपूर्ण रचना होते हुए भी सालंकारिक है । बीकानेर के बड़े ज्ञानभण्डार में संग्रहित १५वीं की शताब्दी की लिखित प्राचीन प्रतिसे इसकी प्रतिलिपि की गई है। (१) श्रीचतुर्विंशतिजिनस्तवनम् । (प्रवर्द्धमानाक्षरविभिन्नजातिव्यक्तिछन्दोविशेषरचितम्) युगादौ जगदुद्धर्तु, यो युग्मविपुलावनौ । दिदेश धर्ममोक्षौ तं, स्तौमि श्रीनाभिनन्दनम् ॥१॥ युग्मविपुला ।। इन्द्रियगणैरविजितं, योऽर्हति जिनेन्द्रमजितम् । सङ्गतनितान्तमुदयं, सोवन्ति महान्तमुदयम् ॥२॥ उदयम् ।। चन्दनकर्पूरागुरुशाला, केतकजाती चम्पकमाला । नन्दतिवर्या तेऽङ्गसपर्या, सम्भवनेतः कस्य न चेतः ॥३॥ चम्पकमाला ॥ उपेन्द्रवज्रायुधवामदेवादयोजिता येन नृदेवदेवाः ।। स्मृतेऽपि यन्नामनि सोपि कामो, मृयेत नन्द्यादभिनन्दनोऽयम् ॥४॥ उपेन्द्रवज्रा ॥ द्रुतविलम्बितगीतिरसो लसच्चरणसञ्चरणातिमनोहरम् । (३) (४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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