Book Title: Char Laghu Stotra Kavyo Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ अनुसन्धान ४३ ४१ __ आ स्तोत्रकाव्योना प्रणेता मुनि रत्नसिंह छे. दरेक स्तोत्रना छेल्ला पद्यमां तेमणे पोतानो तथा पोताना गुरु-प्रगुरुनो नामोल्लेख ज छे. तेमनो प्राप्य परिचय आ प्रमाणे छ : ___ तपगच्छना गच्छपति श्रीहेमविमलसूरि (१६मो शतक) ना एक पट्टधर आ सौभाग्यहर्षसूरि हता. सम्भव छे के मुनि रत्नसिंहे उल्लेखेला पोताना प्रगुरु श्री संघहर्ष ते आ सौभाग्यहर्षसूरिना शिष्य होय. गच्छपति आ. हेमविमलसूरि महाराज एकदा विहार दरम्यान कपडवणज पधारेला, त्यांना श्रावक दोशी आणंदजीए तेमनु शाही ठाठथी एबुं स्वागत कर्यु के तेथी गिण्णायेला कोईके ते समयना सुलतान मुझफ्फरशाह बीजानी आगळ चाडी खाधी; परिणामे शाहे गच्छपतिने पकडावीने केदमां पूराव्या. तेमने छोडाववा माटे, सुलताननी आज्ञा मुजब, १२,०००/- टकानो दंड भर्यो, ते पछी ज तेमनो छुटकारो थयो. आ पछी सूरिवरनी आज्ञा थवाथी तेमना चार विद्वान साधु शिष्यो - हर्षकुल गणि, संयमकुशल गणि, शुभशीलगणि तथा संघहर्ष गणि-ए राजसभामां जई पोताना पाण्डित्यनी चमत्कृति द्वारा शाहने रीझव्यो अने बार हजार टकानो दंड माफ करावी ते रकम संघने पाछी अपावी. आ ऐतिहासिक घटनामा उल्लेखायेला चार साधुओमांना एक संघहर्षगणि ते ज आ स्तोत्रोना कर्ताए अन्तिम पद्यमां निर्देशेला संघहर्ष होय तेम मानी शकाय. संघहर्ष गणिना शिष्य धर्मसिंह गणि थया, तेमणे सं. १५८०मां विक्रमरास रचेलो. तेमना शिष्य मुनि रत्नसिंह ते आ स्तोत्रोना कर्ता. तेमना विषे विशेष जाणकारी प्राप्य नथी. मात्र तेमना शिष्य शिवविजयजी नामे हता, जेमणे तीर्थमाळा बनाव्यानी नोंध सांपडे छे. तेमणे नेमि भक्तामर, पार्श्वकल्याणमन्दिर जेवी कृतिओ पण बनावी होवा जाणवा मळे छे. चार पैकी पार्श्वनाथ स्तोत्रनी प्रति श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञान मन्दिर - कोबाथी, क्र. २-३ स्तोत्रोनी प्रति श्री हेमचन्द्राचार्य ज्ञान मन्दिर - पाटणथी तथा आनन्दलहरीनी प्रति स्व.मुनिरत्नाकरविजयजी - ग्रन्थसंग्रह, महुवाथी प्राप्त थयेल छे. जेरोक्स नकल आपवा बदल ते सर्व ग्रन्थ भण्डारोना कार्यकरोनो आभार मानीए छीए. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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