Book Title: Char Laghu Stotra Kavyo
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 9
________________ 4 . मार्च 2008 अतस्त्वामेवोच्चैर्गुणगण ! नयामि स्तुतिपथ, वचोभिर्वाग्देवीवदनकमलामोदमधुरैः२० // 11 // हरिस्त्वामाराध्य प्रणतजनसौभाग्यजननी२९, यथेच्छं कर्णाभ्यां तव गिरमथापीय मधुराम् / यथा मोदं धत्ते मनसि निभृतं नाम न तथा, सुधामप्यास्वाद्य प्रतिभयजरामृत्युहरि(र)णीम्२२ // 12 // त्वदन्यः पाणिभ्यामभयवरदो दैवतगणो२३, न कोऽपि त्वं वाचा जगदखिलमालादयसि च / भवज्वालाजालाकलितवपुषामीश ! मनुजां, 'दयार्द्रा दृष्टिस्ते शिशिरमुपचारं रचयति२४ // 13 // विसा(शा)ला कल्याणी स्फुटरुधिरेबोधा कुवलयै२५ निरौपम्या दृष्टिनिपतति जने पुण्यवति ते / भवद्भक्त्यासक्ते सुरमहितसम्यक्त्वसुभगे, ददाने दोनेभ्यः श्रियमनिशमाशा(शां)नु सदृशीम्२६ // 14 // विपद्यन्ते विश्वे विधि-शतमखाद्या दिविषद-२७ स्तदा सद्य: पातिन्यहह ! ममता का निजतनौ ? प्रमादं हित्वाऽतः स्तुतिपथममुं नाम नय भोः !, कवीन्द्राणां चेतःकमलवनबालातपरुचिम्२८ // 15 // श्रीसंघहर्षसुविनेयकधर्मसिंह पादारविन्दमधुलिण्मुनिरत्नसिंहः / शैलात्मजास्तवपदद्वयसनिबद्धं, स्तोत्रं चकार परमं परमेश्वरस्य // 16 // // इति श्रीसौन्दर्यलहरीपदद्वयनिबद्धसमस्यया "आनन्दलहरी" नाम श्रीजिनपतिस्तुतिः समासमासेति मङ्गलमालिकाः प्रथयन्तु / श्री वीरजिनप्रसा[दा]त् // श्रीः // (20) श्लो. 17, पं. 4 / (21) श्लो. 5, पं. 1 / (22) श्लो. 28, पं. 1 / (23) श्लो. 4, पं. 1 / (24) श्लो. 39, पं. 4 / 1. 'दयार्दी या दृष्टिः' इति मु. प्रतौ / (25) श्लो. 49, पं. 1 / 2. रुचिरयोध्या० इति मु.प्रतौ / (26) श्लो. 90, पं. 1 / (27) श्लो. 28, पं. 2 / (28) श्लो. 16, पं. 1 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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