Book Title: Chapter on Passion
Author(s): N L Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 334
________________ (320) : Chapters on Passions 188 118 161 162 152 67 158 59 173 46 117 70 182 86 166 139/238 119 56 106 84 151 89 94 ओरालिये सरीरे ओवट्टणमुव्वट्टण ओवट्टणा जहण्णा ओवट्टेदि हिदिं पुण कदि आवलियं पवेसेइ कदि कम्हि होंति ठाणा कदि पयडीयो बंधदि कदि भागुवसामिज्जदि कदिसु गदीसु भवेसु कदिसु च अणुभागेसु कम्मंसिय हाणेसु कम्माणि जस्स तिण्णि दु । काणि वा पुवबद्धाणि कामो रागणिदाणो किट्टीकदम्मि कम्मे किट्टीकदम्मि कम्मे किट्टीकदम्मि कम्मे किट्टीकदम्मि कम्मे किट्टीकदम्मि कम्मे किट्टीकयवीचारे किट्टी च ट्ठिदीविसेसेसु किट्टी च पदेसग्गे किट्टीदो किट्टि पुण किट्टीदो किटिं पुण किट्टी करेदि णियमा किमिरायरत्तसमगो के अंसे झीयदे पुव्वं केवचिरं उवजोगो केवचिरमुवसामिज्जदि केवदिया किट्टीओ केवडिया उवजुत्ता केवलदसणणाणे को कदमाए ट्ठिदीए कोधादिवग्गणादो कोहादी उवजोगे कोहो चउव्विहो वुत्तो कोहो य कोवरोसो कोहं च छुहइ माणे कं करणं वोच्छिज्जदि कं ठाणमवेदंतो किं अंतरं करेंतो किं द्विदियाणि कम्माणि किं लेस्साए बद्धाणि किं वेदंतो किडिं खवणाए पट्ठवगो खीणेसु कसाएसु गाहासदे असीदे गुणदो अणंतगुणहीणं गुणसेढि अणंतगुणा गुणसेढि अणंतगुणे गुणसेढि असंखेज्जा गुणसेढि असंखेज्जा चक्खू सुदं पुधत्तं चत्तारि तिग चदुक्के चत्तारि य खवणाए चत्तारि य पट्ठवए 204 191 205 214 206 113 207 232 213 150 167 165 169 146 230 144 229 149 164 20 73 8 93 63 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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