Book Title: Chandra Pragnaptisutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 2
________________ भगवानु : શ્રી અ. ભા. સ્થાનકવાસી જેને શાસ્ત્રોદ્ધાર સમિતિ है. रेडिया यूपा २४, शीट, (सौराष्ट्र) Pablished by: Sbri Akhil Bharat S.S. Jain Shastroddhar Samiti Garedia kuva Road RAJKOT (Saurashtra), W. Ry. India ये नाम केचिदिह नः प्रथयन्त्यवज्ञा, जानन्ति ते किमपि तान् प्रति नैप यत्नः । उत्पत्स्यतेऽस्ति मम कोऽपि समानधर्मा, कालोह्ययं निरवधिविपुला च पृथ्वी ॥१॥ हरि गीतच्छन्दः करते अवज्ञा जो हमारी यत्न ना उनके लिये । जो जानते हैं तत्व कुछ फिर यत्न ना उनके लिये ॥ जनमेगा मुझसा व्यक्ति कोई तत्व इससे पायगा । है काल निरवधि विपुल पृथ्वी ध्यानमें यह लायगा ॥१॥ मूल्य रु. ३०-०० प्रथम आवृत्ति प्रति १००० वीर. सवता-२४.९९ विक्रम , २०२९ ईसवी सन् १९७३ मुद्रक-श्रीरामानन्द प्रिन्टिंग प्रेस, कांकरिया रोड, अहमदाबाद-२२

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