Book Title: Buddhiprabha 1963 10 SrNo 48
Author(s): Gunvant Shah
Publisher: Gunvant Shah

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Page 88
________________ सफलताके मार्ग पर महाभारतमें द्रोणाचार्यका स्थान अद्वितीय है। उन्होंने पांडपोंको शस्त्रविद्या सिखायी और औरयोंको भी। ऐसे महान गुरुका एक मात्र अदिर जहां हैं वहां धनकोरमें सन् १९१० में श्री गडरमलजीके घरमें आपका अन्म हुआ श्रा। मथुरा नगरी जैसी ऐतिहासिक नगरी पामें होने की सुविधासे पचपनसे ही राममामण-कृष्ण बादिकी तस्वीरें और उन महान् पिमूतियोंकी जीवनी मापके दिल पर लगी हुई है। और साधु सन्तोंका आकर्षण-वयावृस्य और भक्ति भी शैशवकालसे ही आज पर्यत रही है। श्री रामचंद : . शामत अभ्यास सो बापने अधिक नहि किया है। मगर अपनी स्वयं सहज बुद्धि और संस्कारसे आप जवानीको सम्रले ही व्यापार में लगे हुए है। अपने छापखाना भी पलवाया था। मगर कई कारणोखे उसे छोड़कर भाष कोयले के व्यापारमें बग गये। आज आप इस व्यापारमें राजा रहे हैं। सम्बईको कोयले की सारी बाजार आपको इज्जत करती है। आपको ज्यादा गुप्तगो पसंद है। जाहिरमें आनेके लिये आपका दिल पसंद नहीं करता। लेकिन जिन्होंने अपने गुप्त मदद की है-हम जानते हैं कि आपने कई बेसहाय, निराधार, बेकार और बेत्राओं को अच्छी खासी सहायता की है। वे सब आपको दुआएँ देते हैं और मनोमन पूजा भी करते हैं। रामके रागी होते हुए भी आप धर्ममें पड़े दिळचश्प रहे हैं। और जब हमने श्रीमद योगनिष्ठ बुद्धिसागरजीको जीस्ती कही बर माप झम उठे थे। भक्तिसे आपका सिर उन महात्माको चरणमें एक चुका था। आप तो अपनी आदतसे आपकी जीवनी जाहिर करनेको नहीं चाहते थे लेकिन हमारी जीदसे ही आपने हमें मुहब्बतके मजबूनि अनुमति दे दी। ____आपकी धर्मपत्नी सुभद्रादेवी भी वही सशील है और धर्मरागी भी। आपके जीवन कार्यमें उनकी प्रेरणा खूब है। ___ जब कि बाप कमी सदास और खुशी श्री दुमदादेवी भी होते है वो “पट घंटमैं भगवान मन मंदिर-घट घटमें भगवान " यह रटकर सांत्वना लेते हैं।

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