Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 8
________________ मदिरा आदि के घड़े हो, अग्नि या जल युक्त स्थान हो दीपक का प्रकाश हो, पिण्ड खीर दही आदि बिखरे पड़े हो वहाँ श्रमण श्रमणियों को नहीं रहना चाहिए / सार्वजनिक स्थान आगमनगृह, खुले घर वंशीमूल-घर के बाहर चौतरा, वृक्ष के नीचे साध्वी को रहना अकल्प्य है। पाँच प्रकार के वस्त्र तथा रजोहरण रखने का विधान है। तीसरे उद्देशक मे श्रमण श्रमणियों को एक दूसरे के उपाश्रय में रहने का निषेध है / रोग आदि विकट अवस्था में चर्मग्रहण करने का विधान है। कृत्स्न और अकृत्स्न वस्त्र ग्रहण करने की विधि बताई गई है इत्यादि / चौथे उद्देशक में प्रायश्चित्त और आचार विधि का उल्लेख है। ब्रह्मचर्य की रक्षा के विशिष्ट नियम बताए गये हैं / रात्रिभोजन सेवन करनेवाले को अनुद्घातिक अर्थात् गुरु प्रायश्चित्त का विधान है। पारंचिक और अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त के योग्य स्थान बताये गये हैं। एक गण से दूसरे गण में जाने की विधि और निषेध के प्रायश्चित्त बताये गये हैं / झगड़े को आपस में सुलझाने तथा कालगत साधु के विसर्जन की विधि तथा वर्षाकाल में किस प्रकार का उपाश्रय होना चाहिए आदि का वर्णन है। पाँचवें उद्देश में सूर्योदय के पूर्व और सूर्योदय के पश्चात् भोजन पान सम्बन्धी नियम, निर्ग्रन्थिनी को अकेले जाने का निषेध, रात्रि या विकाल में पशु पक्षियों के स्पर्श का निषेध, निर्ग्रन्थिनी को वस्त्र और पात्र रहित रहने का निषेध इत्यादि / छठे उद्देश में साधु साध्वियों को दुर्वचन बोलने का निषेध, संकट ग्रस्त निर्ग्रन्थिनी को किस प्रकार की सहायता की जा सकती है उसकी विधि, तथा छह प्रकार के कल्प का विचार किया गया है। इन्हीं छह उद्देशों की स्पष्टता के लिए श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामी ने कुछ नियुक्ति गाथाओं की भी रचना की है। भाष्यकारों ने छहों उद्देशों में आनेवाले आचार विषयक उत्सर्ग और अपवाद विषयक विस्तृत चर्चा भी की है। इस प्रकार मूल सूत्र में संयमी जीवन का व उनके द्वारा पालन करने के नियमों का विस्तृत आलेखन किया / मूल सूत्र में उल्लखित नियमों की भाष्यकार ने विस्तृत चर्चा की है। बृहत्कल्प लघुभाष्य : बृहत्कल्प लघुभाष्य के कर्ता आचार्य श्रीसंघदासगणी क्षमाश्रमण थे / आचार्य संघदास गणी कौन थे ? कब हुए ? इस विषयक जानकारी उपलब्ध नहीं है। किन्तु यह निश्चितरूप से कहा जा सकता है कि संघदास गणी क्षमाश्रमण जैन आगम साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान थे / छेद सूत्रों के अध्येता और अनुसंधाता थे / बृहत्कल्प-लघुभाष्य तथा पंचकल्पभाष्य संघदासगणी की बहुत ही महत्त्वपूर्ण कृति है। इसमें बृहत्कल्पसूत्र के पदों का विस्तार के साथ विवेचन किया है / लघुभाष्य होने पर भी इसकी गाथा संख्या 6490 है /

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